News APP

NewsApp (Free)

Read news as it happens
Download NewsApp

Available on  gplay

This article was first published 5 years ago
Home  » Sports » भारत की गोलकीपर जो आज एक मजदूर है

भारत की गोलकीपर जो आज एक मजदूर है

By लक्ष्मी नेगी
July 25, 2019 10:02 IST
Get Rediff News in your Inbox:

'मैं बस फिर से फुटबॉल खेलना चाहती हूं'

कुछ साल पहले, वह भारतीय महिला फुटबॉल टीम की गोलकीपर थीं। आज, तनुजा बागे बेहद मुश्किल दिनों का सामना कर रही हैं और किसी तरह गुज़र-बसर चला रही हैं।

झारसुगुड़ा के औद्योगिक ज़िले में मजदूरी की कमाई से परिवार चलाना संभव न होने के कारण कई टूर्नामेंट्स में उड़ीसा की ओर से खेलने के बाद राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने वाली 29 वर्षीया खिलाड़ी अपनी कमाई को थोड़ा बढ़ाने के लिये बकरियाँ भी पालती हैं।  

जब लक्ष्मी नेगी/रिडिफ़.कॉम ने तनुजा को कॉल किया, तब वह घर पर लौटी ही थीं। वह अपने परिवार के लिये चावल ख़रीदने गयी हुई थीं। 25 रुपये के पाँच किलो चावल से उनके परिवार का एक सप्ताह का ग़ुज़ारा चलेगा।

तनुजा अपनी ज़िंदग़ी के मुश्किल दौर से ग़ुज़र रही हैं, लेकिन इसके बावजूद, आज भी वह अपने और अपनी बेटी के लिये स्पोर्ट्स करियर का सपना देखती हैं।

खेल-कूद में आपका करियर कैसे शुरू हुआ?

मैं हमेशा दौड़ती रहती थी। मैंने एथलेटिक्स चुना था। मैं 100 से लेकर 2,000 मीटर तक की दौड़ में हिस्सा लेती थी।

जब मैं ज़िला सम्मेलनों में गयी, तो मैंने वहाँ लड़कियों को फुटबॉल खेलते देखा, जो मुझे काफी मज़ेदार लगा। अपने कोचेज़ की मदद से मैंने यह खेल खेलना शुरू किया और उसके बाद कभी पलट कर नहीं देखा।

फुटबॉल से ब्रेक के दौरान मैं रगबी भी खेलती थी। नियम और बारीकियाँ कभी मेरे पैरों की बेड़ियाँ नहीं बनीं। जुनून हर चीज़ पर हावी था।

भारत के लिये आपका करियर कितने समय तक चला?

मैंने लगभग एक दशक तक उड़ीसा के लिये फुटबॉल खेला था। मैंने फुटबॉल में तीन राष्ट्रीय मैच और रगबी में एक मैच खेला था।

मुझे भारतीय राष्ट्रीय टीम में बतौर गोलकीपर चुन लिया गया। मुझे इसके लिये नेपाल जाना था, लेकिन पैसों की कमी के कारण मेरा यह सफ़र ज़्यादा लंबा नहीं चल पाया।

आपने फुटबॉल खेलना क्यों छोड़ दिया?

ख़ुशक़िस्मती से मुझे झारसुगुड़ा में होम गार्ड की नौकरी मिल गयी, लेकिन इसके बारे में सिर्फ यही अच्छी बात थी। मुझे स्पोर्ट्स कोटा में नौकरी दी गयी थी। हैरानी की बात है, कि मुझे आगे खेलने नहीं दिया गया।

मुझे राष्ट्रीय मैच खेलने, ट्रेनिंग में या तैयारी के कैम्प्स में जाने के लिये छुट्टी नहीं दी जाती थी।

कई बार मैं चोरी-छुपे फुटबॉल प्रैक्टिस में जाने के लिये समय निकाल लेती थी।

खेल-कूद और नौकरी के बीच संतुलन बनाना धीरे-धीरे मेरे लिये मुश्किल होता जा रहा था। बाद में, मेरी शादी हो गयी और मैंने एक बच्ची को जन्म दिया।

अब आपकी क्या उम्मीदें हैं?

मैं बस दुबारा फुटबॉल खेलना चाहती हूं। मैं ऐसा कर सकती हूं, और कर के रहूंगी!

साथ ही, मैं कोचिंग भी लेना चाहूंगी।

मैंने अपनी बेटी को बेझिझक खेल-कूद चुनने की पूरी आज़ादी दी है।

मैंने कोचिंग क्लासेज़ लेने की कोशिश की थी, लेकिन इन चीज़ों के लिये पैसे होना ज़रूरी है। मेरे पास अपनी कोचिंग के लिये पैसे नहीं हैं।

मैं ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं - सिर्फ मैट्रिक पास हूं। लेकिन अगर मैं जी-जान लगा दूं, तो मुझमें किसी भी चीज़ को हासिल कर लेने का हौसला है।

आपने बकरियाँ पालना कब शुरू किया?

जब मेरे पास नौकरी नहीं थी, तब अपनी थोड़ी-बहुत जमा-पूंजी से मैंने दो बकरियाँ ख़रीदीं, बुद्धि और सिद्धि।

कुछ समय बाद मैंने सिद्धि को बेच दिया। बुद्धि ने दो बच्चों को जन्म दिया। अभी मेरे पास 10 बकरियाँ हैं। मेरे पास सही घर नहीं है।

रोज़ की मजदूरी के काम से मैं घर चलाती हूं। मैं बस अपनी बेटी को खेलते देखना चाहती हूं।

मेरे पति रोज़ तनख़्वाह पाने वाले मजदूर हैं। हम कितनी भी मेहनत कर लें, हमारा जीना मुश्किल ही है।

मैं कोई बहुत ज़्यादा पैसों वाली नौकरी नहीं मांगती। मुझे बस एक ऐसी स्थिर नौकरी चाहिये, जिसके साथ मैं खेल-कूद से जुड़ी रह सकूं और अपनी बेटी को खिलाड़ी बनाने का सपना पूरा कर सकूं।

क्या आपको इस बात की निराशा नहीं है कि खेल-कूद के कारण आज आपको ऐसे दिन देखने पड़े हैं?

मैं खेल-कूद के बिना जीने की सोच ही नहीं सकती।

मैंने कुछ हज़ार रुपयों के लिये इसे छोड़ देने की कोशिश भी की थी, लेकिन मुझे लगने लगा कि मैंने ख़ुद को कहीं खो दिया है। अब मैं फिर से खेल-कूद में कदम रखने के एक मौके की तलाश में हूं।


आप https://www.ketto.org/fundraiser/help-goalkeeper-tanuja-fight-poverty (बाहरी लिंक) पर तनुजा की मदद कर सकते हैं ।

Get Rediff News in your Inbox:
लक्ष्मी नेगी
Related News: 1

India In Australia 2024-2025