'मैं दिल से एक देशभक्त हूं।'
जॉन एब्रहम को पूरा विश्वास है कि उनकी नयी फिल्म रॉ: रोमियो अकबर वॉल्टर अच्छी बनी है।
उनके मसल्स दिखाने वाली एक टैन कलर की मसल टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहने जॉन ने मीडिया से कहा कि अगर आप "ज़िम्मेदार" हैं, तो आपको रॉ ज़रूर देखनी चाहिये।
बात टिकट बिकने की नहीं है, उन्होंने सफ़ाई दी।
"आपको क्लाइमैक्स बेहद पसंद आयेगा," उन्होंने एंटरटेनमेंट मीडिया रिपोर्टर्स को आश्वासन दिया।
रॉबी ग्रेवाल द्वारा डायरेक्ट की गयी रॉ में जॉन 15 अवतारों में नज़र आते हैं।
हालांकि जॉन को अपनी आज-कल की मूवीज़ काफी पसंद आ रही हैं, फिर भी ऐसा लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री को लेकर उनका मोहभंग हो गया है।
"हमारे अवॉर्ड्स (कार्यक्रम) को पान मसाला ब्रांड्स एन्डॉर्स करते हैं। हमारी विश्वसनीयता कहाँ है? घास चरने गयी!" उन्होंने ध्यान से सुनती रॉन्जिता कुलकर्णी/रिडिफ़.कॉम के सामने मीडिया से कहा।
ऐसा लगता है कि उरी से देशभक्ति की फिल्मों का ट्रेंड चल पड़ा है।
हमने उरी की रिलीज़ से पहले ही शूटिंग शुरू कर दी थी।
सब कुछ भी कहें (कि ये ट्रेंड है) लेकिन मैं मोटरसाइक्लिंग पर एक फिल्म कर रहा हूं।
ट्रेंड जो भी हो, मैं उसका उल्टा करता हूं।
आप जो काम करें, वही ट्रेंड बन जाना चाहिये। किसी ट्रेंड को फॉलो नहीं करना चाहिये।
मैंने विकी डोनर की और सबने उसे फॉलो किया।
आपको अपने ट्रेंड्स चलाने चाहिये।
लेकिन एक के बाद एक लगातार देशभक्ति की फिल्में रिलीज़ हो रही हैं।
इस तरह की फिल्में डिज़ाइन देख कर नहीं, दिल से की जाती हैं।
मैं मेरे दिल को छूने वाली स्क्रिप्ट्स पर काम करता हूं।
अनीस बाज़मी की पागलपंती करना इस बात की गवाही देता है।
अगर दर्शक के रूप में मुझे कोई स्क्रिप्ट पसंद आये, तो मैं उसे ज़रूर करूंगा।
रॉ की स्क्रिप्ट ने मेरे होश उड़ा दिये। मुझे यह सोच काफी पसंद आयी।
बाटला हाउस ने भी मेरे होश उड़ा दिये थे।
यही बात पागलपंती के लिये भी कही जा सकती है। मैंने अनीस बाज़मी के साथ पहले भी काम किया है, जिसमें मुझे काफी मज़ा आया था।
रॉ वही पुरानी घिसी-पिटी देशभक्ति फिल्म नहीं है।
क्या वो जासूस है? क्या वो ग़द्दार है?
वो आख़िर है क्या?
फिल्म में कई ऐसी चीज़ें हैं, जो आपको देखने पर ही पता चलेंगी।
क्या आपको लगता है कि दर्शक सच्ची कहानियों की ओर आकर्षित होते हैं?
हाँ। सच हमेशा कल्पना से ज़्यादा विचित्र होता है।
सच को पेश करना ज़्यादा आसान होता है।
किसी चीज़ को बना कर लोगों के सामने रखना ज़्यादा मुश्किल होता है।
और अगर आप जानते हैं कि ऐसा हुआ है, तो इसकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है।
सच्ची कहानियों की यही सबसे बड़ी बात है।
क्या रोमियो अकबर वॉल्टर का मतलब रॉ ही है?
मैं अपने को-प्रोड्यूसर बंटी वालिया को इसका श्रेय देना चाहूंगा। किरदारों के नाम हैं रहमातुला अली, अकबर मलिक और वॉल्टर ख़ान। तो क़िस्मत से ये नाम रोमियो, अकबर, वॉल्टर या रॉ बन जाते हैं, जो हमारे लिये काफ़ी अच्छा रहा।
मेरे किरदार के अलावा - मद्रास कैफ़े की तरह, जहाँ मेरा किरदार काल्पनिक था - रॉ तीन अलग-अलग किरदारों से प्रेरित है। हमने इन तीन किरदारों की सच्ची कहानियों को जोड़ा है। बाकी फिल्म सच पर आधारित है।
(डायरेक्टर) रॉबी ग्रेवाल के पिता मिलिट्री इंटेलिजेंस में थे, तो हमने डीटेलिंग में कोई गलती नहीं की है। डीकोडिंग मशीनें, लाय डिटेक्टर्स... सब कुछ हक़ीक़त की तरह ही है।
सबसे ख़ास बात है कि ये फिल्म सिखाने के लिये नहीं, मनोरंजन के लिये बनाई गयी है।
फिर भी, थियेटर से बाहर निकलते समय आप कुछ महसूस ज़रूर करेंगे, जो मैंने परमाणु के लिये भी कहा था।
मेरी बात मानिये, रॉ से बाहर निकलते समय, आप ज़रूर इसकी तारीफ़ करेंगे।
आपको इसका क्लाइमैक्स बेहद पसंद आयेगा।
इसलिये नहीं, कि इसमें मैंने काम किया है। फिल्म के असली हीरो तो रॉबी ग्रेवाल हैं, उन्होंने इसे अलग अंदाज़ में बनाया है।
अगर मेरी फिल्म ख़राब हो, तो मैं ख़ुद बता दूं। मुझमें उतना जिगर है।
लेकिन ये फिल्म बेहद अच्छी है।
क्या आपके देश भक्ति थीम्स चुनने का कोई कारण है?
यह कोई सोच-समझ कर लिया गया फैसला नहीं है।
मुझे जो स्क्रिप्ट अच्छी लगती है, मैं ले लेता हूं।
लेकिन सच कहूं, तो मैं इंडिया से प्यार करता हूं।
मैं दिल से एक देश भक्त हूं, और शायद इसलिये ऐसी कहानियाँ मेरी ओर खिंची चली आती हैं - या शायद मैं उनकी ओर खिंचा चला जाता हूं।
क्या आपकी ऐक्टिंग का अंदाज़ आपके मॉडलिंग के दिनों से बदला है?
मैंने एमबीए करने के बाद मॉडलिंग शुरू की।
मुझे हमेशा से राजनीति की जानकारी थी, लेकिन उन दिनों में, मार्केटिंग पढ़ने के कारण, मुझे पता था कि अगर आपको कोई प्रॉडक्ट बेचना हो, तो आपको उसकी यूएसपी बेचनी चाहिये।
मैं भी एक प्रॉडक्ट था और मेरी फ़िज़िकैलिटी मेरा यूएसपी थी।
तो मैंने खुद को बेचने के लिये उसका इस्तेमाल किया।
फिर मैंने वो करने की ठानी, जो मैं हमेशा करना चाहता था।
अगर आप देखें, प्रोड्यूसर बनने के बाद से मेरा परफॉर्मेंस एक अलग लेवल पर आ गया है।
न्यू यॉर्क, टैक्सी 9 दो 11 और ज़िंदा बेशक अच्छी फिल्में थीं, लेकिन प्रोड्यूसर बनने के बाद, मेरे परफॉर्मेंसेज़ में एक मैच्योरिटी आयी है, अब मैं अपने काम से खुश हूं।
जैसे विकी डोनर मेरी फिल्म थी, लेकिन मैंने इसके लिये सबसे सही ऐक्टर को लिया।
इसी तरह, मेरे ख़्याल से मैंने मद्रास कैफ़े के लिये सबसे सही ऐक्टर को चुना।
आपने अपने चारों ओर एक दीवार सी बना ली है, आप इंडस्ट्री को इस दीवार के बाहर रखते हैं।
मुझसे किसी ने कहा कि तुमने अपनी दुनिया बना ली है, अपनी ही दुनिया में काम करते हो, अपनी तरह का सिनेमा करते हो और वहीं खुश रहते हो।
मैं कहा यह बिल्कुल सही है; यही मैं हमेशा करना चाहता था।
मैं अपनी दुनिया बनाकर उसी में जीना चाहता था, क्योंकि अगर आप किसी और के स्टाइल या कल्चर के पीछे चलें, तो आप हर पार्टी या कैम्प में भटकते रहेंगे।
और मैं फॉलोअर नहीं हूं। मुझे ये सब नहीं आता।
मुझे नहीं पता किसी कैम्प में कैसे रहते हैं।
मैं इस कल्चर को नहीं समझ पाता।
इसलिये मैं अपनी तरह की फिल्में करता हूं।
मैं काम के लिये डायरेक्टर्स के आगे हाथ नहीं फैलाता, क्योंकि मुझे लगता है कि मैं अपना काम खुद बना सकता हूं।
मैं ऐसा नहीं कहता कि मेरी बनाई चीज़ दुनिया में सबसे अच्छी है, लेकिन कम से कम जब लोग जे ए इंटरटेनमेंट की फिल्म देखने जायेंगे, तो उन्हें पता होगा कि कुछ तो अलग होगा इसमें।
और मैं यही करना चाहता हूं।
मुझे 100 या 200 करोड़ की फिल्म नहीं करनी।
मैं अलग कहानियाँ बनाना चाहता हूं, जिसका लोग मज़ा ले सकें।
इसलिये मैं खुद को अलग रखता हूं।
कहीं बैठ कर अपने खाने की तसवीरें लेना या टॉयलेट की तसवीरें इंस्टाग्राम पर डालना कहाँ की समझदारी है?
मुश्किल ये है कि आजकल सोशल मीडिया स्टार्स बहुत हैं। लेकिन उन्होंने सिनेमा में क्या किया है?
क्या उन्होंने सिनेमा पर असर छोड़ने वाला कोई काम किया है? इसका जवाब ना है।
अपने काम को लोगों से बात करने देना ज़रूरी है।
सोशल मीडिया में नंगे बदन खड़े हो जाना मेरे लिये बहुत आसान है। मैं 40 अलग-अलग एक्सरसाइज़ेज़ करके शूटिंग जारी रख सकता हूं। लेकिन मैं ये सब नहीं करना चाहता।
अवॉर्ड्स सेरेमनीज़ पर आपका क्या विचार है?
मैं अवॉर्ड्स की इज़्ज़त नहीं करता।
आप बेस्ट सोशल मीडिया स्टार का अवॉर्ड कैसे दे सकते हैं?
मेरे दिल में अवॉर्ड्स के लिये रत्ती भर भी सम्मान नहीं है और उन्हें पता है कि मैं उनकी इज़्ज़त नहीं करता, इसलिये वो मुझे नॉमिनेट भी नहीं करते।
क्या परमाणु नॉमिनेशन की हक़दार नहीं थी?
लेकिन हमें नॉमिनेट नहीं किया गया क्योंकि मैं नेशनल अवॉर्ड्स को छोड़ कर किसी भी अवॉर्ड की इज़्ज़त नहीं करता।
यह अब मज़ाक बन कर रह गया है।
पान मसाला ब्रांड्स अवॉर्ड्स को एन्डॉर्स कर रहे हैं।
हमारी विश्वसनीयता कहाँ है? घास चरने गयी!
लेकिन यह एक लाइफ़स्टाइल चुनने की तरह है।
अगर आप शादियों में नाचना पसंद करते हैं, तो आप ये भी कर सकते हैं।
हमें पागलपंती के बारे में और बताइये।
मैं अनीस बाज़मी का बहुत बड़ा फैन हूं।
पागलपंती रोलर कोस्टर की सवारी की तरह है। आपकी हँसी एक पल के लिये भी नहीं रुकेगी।
इसकी शूटिंग के समय मौसम ख़राब था (लंदन में)।
लेकिन पूरे कास्ट और क्रू को श्रेय दिया जाना चाहिये -- सभी ने कड़ी मेहनत की है, क्योंकि सबने वहाँ खड़े होकर काँपते-काँपते शॉट पूरे किये हैं।
अनीस कॉमेडी के ऐसे लाजवाब लेखक हैं कि आप सेट पर बैठ कर भी हँसते रहेंगे। आप थोड़ी देर बाद ठंड को भूल जायेंगे।
तो अनिल कपूर मॉनीटर को देखेंगे और बोलेंगे, 'वाह क्या काम किया मैंने!' तो वो मॉनीटर पर देख कर अपने काम का मज़ा ले रहे हैं! (हँसते हुए)
लेकिन एक-दो बार हवा बहुत ज़्यादा तेज़ हो गयी थी और हमें शूटिंग रोकनी पड़ गयी थी।