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'मोदी सरकार ने धारा 370 की ऐतिहासिक ग़लती को सुधारा है'
By सैयद फ़िरदौस अशरफ़
August 09, 2019 12:45 IST

'धारा 370 को भारतीय संविधान में बड़े ही गुप्त रूप से डाला गया था'

'आप अपनी ही महिलाओं को उनकी संपत्ति से वंचित कर रहे हैं'

 

फोटो: कश्मीर के विशेष दर्जे के खारिज किये जाने के सरकार के फ़ैसले के बाद अहमदाबाद, गुजरात में खुशी मनाते प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक। फोटोग्राफ: Amit Dave/Reuters

अगस्त 2017 में, चारू वली खन्ना, वकील और राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्या ने सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 35 ए के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी, जब नागरिक होने के दावे को साबित करने के लिये कोई दस्तावेज़ न होने के कारण जम्मू और कश्मीर की सरकार ने उन्हें स्थायी नागरिक मानने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने "स्पष्ट लिंग भेद" के आधार पर अनुच्छेद 35 ए को चुनौती दी थी।

धारा 370 में शामिल अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी प्रमाणपत्र न रखने वाले किसी मर्द से शादी करने पर कश्मीरी महिलाओं की संपत्ति पर उनके अधिकार को समाप्त कर देता है।

सोमवार को उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा, जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को रद्द कर दिया और इस राज्य को जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख नामक दो केंद्रशासित प्रदेशों में बाँटने के लिये एक अलग विधेयक पारित किया।

सैयद फ़िरदौस अशरफ़/रिडिफ़.कॉम के साथ एक साक्षात्कार में वली खन्ना ने कहा, "यह कदम देश की एकता को बढ़ायेगा, जो आज के दौर में सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।"

आप भारतीय संविधान के अनुच्छेद को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने वाली जम्मू-कश्मीर की पहली व्यक्ति थीं और आज मोदी सरकार ने धारा 370 को खारिज कर दिया है। आपको यह फ़ैसला कैसा लगा?

मैं बेहद ख़ुश हूं, लेकिन शाम तक मैं और भी जानकारी लेना चाहूंगी (क्योंकि मैंने अभी इसे विस्तार से नहीं पढ़ा है)। धारा 370 को रद्द करके एक ऐतिहासिक ग़लती को सुधारा गया है। यह कदम इस सरकार के विकास की ओर बढ़ने के दृढ़ निश्चय का संकेत देता है।  

यह कदम देश की एकता को बढ़ायेगा, जो आज के दौर में सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।

क्या आपको सरकार से इस फ़ैसले की उम्मीद थी?

मैंने न्यायालय में अर्ज़ी दी थी और मुझे उम्मीद थी कि उनका फ़ैसला संवैधानिक (मेरे पक्ष में) होगा। और मुझे ख़ुशी है कि सरकार ने अब इस दिशा में कदम बढ़ाया है, क्योंकि हर चीज़ के लिये कोई न्यायालय क्यों जायेगा? प्रशासन चलाना सरकार का काम है और इस सरकार ने साबित कर दिया है कि कानून बनाना सरकार का काम है।

मोदी सरकार ने धारा 370 की ऐतिहासिक ग़लती को सुधारा है।

आपको पहली बार कब लगा कि धारा 370 भारत के लिये ग़लत है?

मुझे हमेशा ही ऐसा लगता था। अगर आप इतिहास पर नज़र डालें, तो धारा 370 को भारतीय संविधान में बेहद गुप्त तरीके से डाला गया था। इसे अस्थायी कहा गया था, तो अब यह स्थायी कैसे हो गया?

इससे पता चलता है कि कई सरकारें आयीं और गयीं, लेकिन किसी का भी इरादा धारा 370 को समाप्त करने का नहीं था। उनका इरादा देश की एकता को मज़बूत करने का नहीं था। और ऐसी कई राजनैतिक पार्टियाँ थीं, जिन्होंने देश को धर्म के नाम पर टुकड़ों में बाँटने की कोशिश की है।

लगभग कई दशकों तक कश्मीर में हत्याएँ हो रही थीं (कश्मीरी पंडितों की) लेकिन किसी सरकार ने कुछ नहीं किया। मुझे ख़ुशी है कि ऐसा किया गया।

क्या आपको लगता है कि अब लोग जम्मू-कश्मीर में घर ख़रीदेंगे?

ऐसा तुरंत तो नहीं होगा। लोग तुरंत जाकर जम्मू-कश्मीर में घर नहीं ख़रीदेंगे। इसकी एक प्रक्रिया है। इसके लिये वहाँ ज़मीन उपलब्ध होनी चाहिये और ज़मीन के (स्वामित्व के) काग़ज़ात सही होने चाहिये।

हल्के तौर पर, मुझे लगता है अब लोग मुझे आकर कहेंगे, चारूजी, आइये मेरा घर ख़रीदिये जम्मू-कश्मीर में।

आपको ऐसा कब लगा कि आपको अनुच्छेद 35ए के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय जाना चाहिये?

मेरा परिवार दो पीढ़ी पहले कश्मीर छोड़ चुका है, लेकिन कश्मीर में हमारा पुश्तैनी मकान था। लेकिन स्थिति बहुत ही दुःखद ढंग से बिगड़ने लगी। मैं पिछली बार कश्मीर बेहद गर्व के साथ गयी थी; मैं अपने पति को भी साथ ले गयी थी।

मैं अब दिल्ली में बस चुकी हूं, लेकिन यहाँ प्रदूषण बहुत ज़्यादा है और कहीं बसेरा बना लेने के बाद आप एक दूसरे घर की तलाश करते हैं, जहाँ आप छुट्टियों में जाकर आराम कर सकें। मेरे पति ने मुझसे कहा कि वह कश्मीर की जगह पहाड़ियों में जाना चाहेंगे और उन्होंने मुझे इसका कारण भी बताया।

तब मुझे पता चला कि एक ग़ैर-कश्मीरी से शादी कर लेने के कारण, अब मैं वहाँ मकान नहीं ख़रीद सकती। मुझे इसपर यक़ीन नहीं हुआ। मैंने दो साल तक कोशिश की और किसी ने मेरा साथ नहीं दिया। फिर मैंने अपनी समस्या का समाधान दूसरों से जानने की कोशिश की।

तो आप किससे मिलीं?

मैं कई कश्मीरी पंडित महिलाओं से मिली, जिनकी शादी ग़ैर-कश्मीरी लोगों से हुई थी। फिर मैंने ऐसी अविवाहित महिलाओं का पता लगाया, जिन्होंने अपने पैसों से कश्मीर में बाग़ान ख़रीदे हैं। बाद में ये लोग कश्मीर छोड़ कर दिल्ली या मुंबई में रहने लगे। और इन शहरों में उन्होंने ग़ैर-कश्मीरियों से शादी करके अपनी संपत्ति गँवा दी। उनके परिवारों को भी उनकी संपत्तियाँ विरासत में नहीं मिल पायीं।  

मैं चाहती थी कि बहुत सारी लड़कियाँ मेरे साथ आगे आयें और इस अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ें, लेकिन कोई भी आगे नहीं आया, क्योंकि उनके मन में अलगाववादियों का डर था। और उन राजनैतिक पार्टियों का भी, जिनमें वंश-परंपरा चलती है। इसलिये आज ये लोग अपने ही घरों में क़ैद हैं। इसके बाद मेरी कज़न ने मेरा साथ दिया, जो एक विधवा है, कश्मीर से ही है और डॉक्टर है, जिसके बाद मैंने याचिका दायर की, और आगे की कहानी तो सबको पता है।

तो अब आपको लगता है कि आप दोनों तुरंत घर ख़रीद सकती हैं?

सुरक्षा का मुद्दा तो अभी भी बना हुआ है। मुझे लगता है कि सरकार ने बहुत ही समझदारी से यह कदम उठाया है। उन्होंने सुरक्षा बलों को आगाह कर दिया है और वे नहीं चाहते कि इसकी वजह से जानें जायें। यह सब कुछ सुनियोजित और समझदारी से किया गया है। अनुच्छेद 35ए ग़ैरकानूनी है और भारत के राष्ट्रपति को कभी भी इसे हटाने का अधिकार है, जैसे इसे डाला गया था। इस आदेश को कभी भी वापस लिया जा सकता था। वापस लेना तो आसान है, लेकिन आने वाली प्रतिक्रियाओं को भी ध्यान में रखना ज़रूरी है।

कई कश्मीरियों का कहना है कि धारा 370 को हटाना कश्मीर और पूरे देश के बीच के पुल को तोड़ने की तरह है।

यह कथन उनकी ओर से आ रहा है, जो कई पीढ़ियों से देश पर शासन करते आये हैं। ये वंशवादी लोग हैं। उन्होंने ही अपनी बातों और पैसों के दम पर इस तरह की नकारात्मक शक्तियों को कश्मीर में पनपने दिया है, क्योंकि उनका यही इरादा है की  कश्मीर को हमेशा असुरक्षित बनाये रखें। आप अपनी ही महिलाओं को संपत्ति से वंचित रख रहे हैं। और जब ऐसा करके ये लोग अपने ही परिवार की महिलाओं के साथ जुड़ने के लिये पुल नहीं बना रहे, तो फिर कौन से पुल की बात कर रहे हैं ये लोग?

जैसे भारत के 99 प्रतिशत राज्यों ने भारत में शामिल होने के लिये राज्यारोहण पर हस्ताक्षर किये थे, वैसे ही कश्मीर ने भी ब्रिटिश लोगों के जाने के बाद हस्ताक्षर किये थे। राज्यारोहण पर हस्ताक्षर करने वाले जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह के लिये कोई शब्द बदले नहीं गये थे।

कहा जा रहा है कि 35ए महाराजा हरि सिंह लेकर आये थे।

यह 1954 में आया है, जब राजा हरि सिंह नहीं थे। इसे बस हरि सिंह के समय से जोड़ दिया जा रहा है जो 1920 के दशक में जम्मू-कश्मीर पर हुकूमत करते थे। आज भारत एक है और कई राज्यों का संघ है। किसी भी राज्य में कोई समस्या आने पर क्या आप 1920 के दशक की ग़ैरकानूनी चीज़ को कानूनी बना देंगे?

हम नये भारत का हिस्सा हैं, जो धर्मनिरपेक्षता और समानता के मूल्यों पर आधारित है। 1947 के पहले का दौर अब इतिहास है। आप कोई ऐसा कानून नहीं ला सकते, जो 1920 में सही हुआ करता था। उस समय की स्थिति अलग थी।

सैयद फ़िरदौस अशरफ़
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