Rediffmail Money rediffGURUS BusinessEmail

अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से कहीं आगे

November 11, 2019 21:28 IST
By कर्नल अनिल ए अठाले

हमारे दुश्मनों को कोई ख़ुशी नहीं होगी, अगर अदालत के फ़ैसले में बहुसंख्यकों की जीत और अल्पसंख्यकों के ग़ुस्से का समावेश हो, कर्नल अनिल ए अठाले (रिटायर्ड) का कहना है।

यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका आधार सिर्फ राजनैतिक है और उचित यह होता कि अदालत ने इस मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया होता और उसकी जगह दोनों समुदायों के प्राधिकारियों को आपसी समझौते से समाधान करने का आदेश दिया होता।

यह सच है कि अभी भी न्यायालय मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है। लेकिन अच्छा यह होता कि अदालत इस मामले से दूर ही रहता।

सच कहा जाये, तो राजनेता इस मामले में अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हट गये और इसे अदालत के मत्थे मढ़ दिया।

अयोध्या कोई संपत्ति का विवाद नहीं है। यह ऐतिहासिक धरोहर और पुराने शासकों के कामों पर उठा विवाद है।

जो लोग ऐसा कहते हैं कि अयोध्या में मस्जिद ख़ास है, क्योंकि यह 500 साल पुराना है, वे लोग यह नहीं जानते कि बड़े मंदिरों पर बनाये गये इससे भी पुराने मस्जिद तोड़े गये हैं और उनकी जगह मंदिर दुबारा बनवाये गये हैं।

उज्जैन के महाकालेश्वर शिव मंदिर को इसवी सन्‌ 1234 में इल्तुत्मिश ने तोड़ दिया था और उसपर एक मस्जिद बनवा दिया गया था। लेकिन 18वीं सदी की शुरुआत में, जब मालवा क्षेत्र में मराठा ताक़त बढ़ गयी, तब राणोजी राव शिंदे (जिन्हें सिंधिया भी कहा जाता है) ने 1734 में इस मस्जिद को गिरा दिया और शिव मंदिर दुबारा बनवा दिया।

इतिहास में दर्ज है कि 1761 में मराठों ने काशी, अयोध्या और मथुरा को मुग़ल शासन से मुक्त करने और पुराने मंदिर दुबारा बनवाने का फ़ैसला लिया था। लेकिन जनवरी 1761 में पानीपत की लड़ाई में मराठों की हार ने इन योजनाओं पर पानी फ़ेर दिया।

उससे भी पहले जून 27, 1742 को मराठा सेनापति मल्हार राव होलकर 40,000 घुड़सवारों की फ़ौज के साथ वाराणसी पहुंचे थे। उनकी योजना थी काशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर बने मस्जिद को तोड़ कर प्राचीन मंदिर दुबारा बनवाने की।

लेकिन वाराणसी के प्रतिष्ठित साधुओं की एक मंडली ने उनसे ऐसा न करने का आग्रह किया, क्योंकि उन्हें डर था कि मराठों के जाने के बाद मुग़ल उन्हें प्रताड़ित करेंगे।

कड़वा सच यह है कि मथुरा मे औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ भारी विरोध के अलावा, अन्य जगहों पर स्थानीय लोग घुसपैठी सेनाओं से अपने धर्मस्थलों को सुरक्षित रखने में नाकाम रहे।

इसके विपरीत, विनाश के मुख्य आरोपी औरंगज़ेब ने कभी भी महाराष्ट्र के किसी भी मंदिर को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं की। महाराष्ट्र में मुग़लों को इतने सशक्त विरोध का सामना करना पड़ा था कि कभी भी उन्होंने मराठों को भड़काने की कोशिश नहीं की।

आपको हमारे पड़ोस में ही अयोध्या जैसा एक और उदाहरण मिल जायेगा।

11वीं सदी में, चोला राजा राजेंद्र I ने श्रीलंका में घुसपैठ की और वहाँ की राजधानी अनुराधापुरा पर कब्ज़ा कर लिया। वहाँ का बुद्ध स्तूप सम्राट अशोक के काल से था और बोध गया से लाया गया एक बोधि वृक्ष भी था। चोला सैनिकों ने इस प्राचीन स्तूप को तोड़ दिया और उसकी जगह एक शिव मंदिर बनवा दिया।

लंकावासियों ने बाद में अनुराधापुरा पर फिर से हुक़ूमत हासिल कर ली। लेकिन स्तूप को आधुनिक काल में ही दुबारा बनवाया जा सका।

हमारे उत्तर भारत पर केंद्रित ऐतिहासिक वर्णन में हम यह भूल जाते हैं कि चोलाओं ने अपनी नौसेना के बल पर बहुत ही बड़ा साम्राज्य खड़ा किया था और दक्षिण पूर्व एशिया के बहुत बड़े हिस्से पर शासन कर रहे थे।

लेकिन इस बात को मैं पक्षपात ही कहूंगा कि 16वीं सदी तक फलते-फूलते विजयनगर साम्राज्य को हम 1,000-वर्षों के मुग़ल साम्राज्य के वर्णन में भूल जाते हैं।

1970 में मैंने अयोध्या की पहली झलक देखी थी। हमारा बटालियन पास ही स्थित फ़ैज़ाबाद में फील्ड फ़ायरिंग कवायद के लिये गया था। खाली समय में, उत्सुकतावश हमारे मुख्य अधिकारी पार्थजीत चौधरी ने इस जगह को देखने का फ़ैसला किया। नये शामिल हुए मातहत के तौर पर मैं उनके साथ गया था।

इस घटना के कई वर्ष बाद भी वह तसवीर आज भी मेरे में बसी हुई है। जब हम राम जन्मस्थान पर गये, तो हमें एक चारदीवारी और द्वार दिखाया गया। चारदीवारी के बाहर से स्थानीय व्यक्ति ने मस्जिद की ओर इशारा करते हुए हमसे कहा कि वही राम जन्मभूमि है।

वहाँ पर कई तीर्थयात्री थे। उन्होंने श्रद्धा से मस्जिद के आगे सिर झुकाया और लोहे के द्वार के सामने फूल चढ़ाये। द्वार पर हारमोनियम लिये कुछ लोग बैठे थे, जो भजन गा रहे थे। हमें बताया गया कि भजन गाने का यह सिलसिला 24 घंटे चलता रहता है, ताकि मस्जिद में नमाज़ न पढ़ा जा सके।

निजी खुलासा: मैं मंदिर जाने वाला हिंदू नहीं हूं और मेरे प्रिय भगवान कृष्ण हैं, राम नहीं (मैं किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता)। सौभाग्य से, हिंदुत्व ने मुझे यह आज़ादी दी है। लेकिन मैं यह भी समझता हूं कि लाखों लोग (सिर्फ भारतीय ही नहीं, बल्कि इंडोनेशियाई मुसलमान भी, उदाहरण के लिये) राम को भगवान या पूजनीय नायक का दर्जा देते हैं। यह जानने के लिये आपको बस उ.प्र. के भीतरी इलाकों या इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर योग्यकर्ता की यात्रा करनी होगी।

मुझे अपने CO से इस बात की चर्चा याद है कि यह अनुभव कितना अपमानजनक था। एक युवा के रूप में मैं दुःखी था कि मुसलमान इस महत्वहीन (उनके लिये) ज़मीन को दुबारा हासिल करने के लिये ज़िद पर अड़े हैं। ये सभी यादें उस दिन लौट आयीं जब लोगों की भीड़ ने पुराने मस्जिद को तोड़ दिया।

अच्छा होता, कि हिंदू और मुसलमान, दोनों पक्षों के नेता और धर्मगुरू साथ बैठ कर इसका कोई समाधान ढूंढ निकालते। 1992 में भीड़ की हरकत इसका समाधान बिल्कुल नहीं थी और यह कभी नहीं होना चाहिये था। आज के मुसलमानों को प्राचीन काल के शासकों की ग़लतियों के लिये ज़िम्मेदार ठहराना कतई सही नहीं है।

लेकिन, दूसरी ओर, भारतीय मुसलमानों को भी ऐसी हरकतों का समर्थन नहीं करना चाहिये, जिन्हें हारे हुए बहुसंख्यकों का अपमान करने के लिये बनाया गया था।

भारतीय लोगों को यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि दुनिया भर की ताकतें भारत में अशांति चाहती हैं, क्योंकि भारत पश्चिमी वर्चस्व के लिये चुनौती बनता जा रहा है। पश्चिमी देशों को दूसरे एशियाई देश चीन के विकास की भी जानकारी है। दिसंबर 7, 1992 को कुछ अग्रणी अमरीकी अखबारों में छपी झूठी ख़बर का शीर्षक इसी बात की गवाही देता है, जिसमें अयोध्या के मस्जिद को 'सबसे पावन मुसलमान तीर्थस्थल' बताया गया था।

हमारे दुश्मनों को कोई ख़ुशी नहीं होगी, अगर अदालत के फ़ैसले में बहुसंख्यकों की जीत और अल्पसंख्यकों के ग़ुस्से का समावेश हो। पश्चिमी देशों की 'फूट डालो और शासन करो' की नीति आज भी जीवित है।

हमें दूरदर्शी सिख गुरुओं की सोच को समझना चाहिये, जिन्होंने स्वर्ण मंदिर के निर्माण की पहली ईंट एक मुसलमान के हाथों बिछवाई थी!

अगर अदालत का फ़ैसला ज़मीन का 2/3 हिस्सा हिंदुओं को दे देता है, जिसकी उम्मीद सबसे ज़्यादा है, तो मुसलमानों की ओर से बाक़ी 1/3 ज़मीन पर दावा छोड़ देना उदारता की एक बड़ी मिसाल होगी।

दूसरी ओर, हिंदुओं को उचित जगह पर एक भव्य मस्जिद बनवाने में मदद करनी चाहिये।

अयोध्या का राम मंदिर राष्ट्रीय एकता की एक मिसाल बन सकता है अगर सभी धर्म और जाति के लोग मिल कर इस मंदिर का दुबारा निर्माण करें।

आख़िर, महान मुहम्मद इक़बाल ने ही राम को इमाम ए हिंद  का दर्जा दिया था। 

कर्नल अनिल ए अठाले

More News Coverage

1

RELATED STORIES

WEB STORIES

11 Amazingly Tempting Bhindi Recipes

Best Gaming Phones Under Rs 30,000

8 Solo Travel Tips For Women

VIDEOS