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सेक्शन 375 रीव्यू

By करण संजय शाह
September 15, 2019 11:59 IST

सेक्शन 375 अदालत पर आधारित एक दिलचस्प ड्रामा है, जिसे देखना तो बनता है, करण संजय शाह ने महसूस किया।

जहाँ #MeToo आज भी भारत में चर्चा का विषय है और अदालती ड्रामा आज भी बॉक्स ऑफ़िस पर सफल होता है, वहीं एक ऐसी फिल्म सामने आयी है, जिसमें इन दोनों को शामिल किया गया है।

सेक्शन 375 भारतीय दंड संहिता के एक कानून पर आधारित है, जिसे महिलाओं को बलात्कार से सुरक्षित रखने के लिये लाया गया था।

हालांकि शुरुआत में यह मामला बिल्कुल ओपन-ऐंड-शट केस की तरह लगता है, लेकिन फिर पता चलता है, कि मामला जितना दिख रहा है, उससे कहीं ज़्यादा गंभीर है।

यह अदालती ड्रामा आपको पहेलियाँ बुझाने पर मजबूर कर देता है और अंत में ठोस सवालों से आपके दिलोदिमाग़ को झकझोर देता है।

एक नामी-गिरामी फिल्ममेकर रोहन खुराना (राहुल भट) पर एक जूनियर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर, अंजलि डांगले (मीरा चोपड़ा) के बलात्कार का आरोप है।

फॉरेंसिक सबूत और अंजलि का बयान बलात्कार की ओर इशारा करते हैं और निचली अदालत उसे कानूनन दोषी करार देती है।

रोहन को 10 साल की बामुशक्कत क़ैद हो जाती है, लेकिन वह अपनी पत्नी कैनाज़ (श्रीस्वरा) से कहता रहता है कि वह बेगुनाह है।

कैनाज़ जाने-माने वकील तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) से मिलती है और उसे अपने पति को बचाने के लिये कहती है।

महाराष्ट्र राज्य बनाम रोहन खुराना का मामला शुरू हो जाता है, जिसमें  हीरल गांधी (ऋचा चढ्ढा) अभियोग पक्ष की वक़ील हैं।

तरुण की पुरानी शिष्या और दमदार वकील हीरल का मानना है कि इंसाफ़ सभी को मिलना चाहिये, जबकि तरुण मानते हैं कि 'उनका व्यापार कानून का है, इंसाफ़ का नहीं। उनका मानना है कि 'इंसाफ़ एक कल्पना है, जबकि कानून एक सच है'।

यही बात अंत में उन्हें भारी पड़ जाती है और आपको इसका कारण फिल्म में पता चलता है।

तरुण यह साबित करने की कोशिश करते हैं इस मामले में उसी कानून का दुरुपयोग किया गया है, जो महिलाओं की सुरक्षा के लिये बनाया गया था, जबकि हीरल यह साबित कर रही हैं कि इस मामले में एक बड़े आदमी ने एक ग़रीब लड़की का फ़ायदा उठाया है।

डायरेक्टर अजय बहल और लेखक मनीष गुप्ता ने फिल्म को बख़ूबी पेश किया है।

बलात्कार जैसी गंभीर मुद्दे को जिस तरह से उन्होंने पर्दे पर उतारा है, उसके लिये जितनी तारीफ़ की जाये, कम है।

फिल्म बेहद दिलचस्प है, और आपको लगातार उलझाये रखती है।

सेक्शन 375 में कहानी को खींचा नहीं गया है, और बैकग्राउंड म्यूज़िक ड्रामा और सस्पेंस को और भी ज़्यादा बढ़ा देता है।

इसके डायलॉग्स दमदार हैं।

इसकी सिनेमेटोग्राफी शानदार है और हमें दिखाती है कैसे देखने का नज़रिया बदलने से पूरी की पूरी कहानी बदल जाती है।

अक्षय खन्ना का अभिनय लाजवाब है!

उनके व्यक्तित्व के कारण आप उनसे नफ़रत करने लगेंगे, लेकिन फिर भी सेक्शन 375 में उनके अभिनय की दाद ज़रूर देंगे। उन्होंने हर दृश्य शानदार तरीके से निभाया है और वकील के रूप में काफ़ी जँच रहे हैं।

ऋचा चढ्ढा ने भी अच्छा परफॉर्मेंस पेश किया है। लेकिन उनके कुछ बेआवाज़ हाव-भाव और मुकदमे के दौरान हर बात पर उनका विरोध मज़े को थोड़ा किरकिरा करते हैं।

लेकिन मीरा चोपड़ा के अभिनय ने हमें चौंका दिया है। अंजलि डांगले, एक ताकतवर डायरेक्टर पर बलात्कार का इल्ज़ाम लगाने वाली लड़की के रूप में उनका किरदार प्रभावित करता है।

राहुल भट, श्रीस्वरा और संध्या मृदुल (तरुण सलूजा की पत्नी के रूप में) ने भी अपने छोटे-छोटे रोल्स को अच्छी तरह निभाया है।

सेक्शन 375 अदालत पर आधारित एक दिलचस्प ड्रामा है, जिसे देखना तो बनता है ।

Rediff Rating:
करण संजय शाह

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