'हमने अपना एक ऐसा दुश्मन बना लिया है जिसे हम देख नहीं सकते, और यह दुश्मन हमारे मनोरंजन के नाम पर हमारे गले में फाँसी के फंदे को कसता जा रहा है।'
'जैसे-जैसे रेडिएशन बढ़ेगा, हर चीज़ पर इसका असर पड़ेगा - आपकी पालतू मधुमक्खियों से लेकर पौधे और हर जीवित कोशिका तक इससे प्रभावित होगी।'
'जब तक हम इससे असर को समझ पायेंगे, बहुत देर हो चुकी होगी।'
जूही चावला की एक छुपी हुई ख़्वाहिश है।
आपके लिये हिंट: ये काम उनसे हो नहीं पाता, क्योंकि उन्हें "शर्म" आती है।
रोंजिता कुलकर्णी/रिडिफ़ .कॉम को पिछले हफ़्ते ही पता चला कि अपने काम में आज भी माहिर ख़ूबसूरत अदाकारा -एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा की सबसे ख़ास बातों में से एक - फोन पर बात करते समय वो बिल्कुल नहीं शर्माती।
वो बेहद विनम्र और खुशमिजाज़ हैं, और आपकी माँ की तरह आपका ख़्याल भी रखती हैं - वो आपसे पूछती हैं कि आपने हेडसेट पहना है या नहीं और मोबाइल फोन आपसे दूर है या नहीं, और ना में जवाब मिलने पर आपको उनसे डाँट भी पड़ती है।
वो दिल खोल कर हँसती हैं और भारत के सबसे बड़े सुपरस्टार - शाहरुख़ ख़ान - के बारे में ऐसे बात करती हैं जैसे वो आपके भी पुराने दोस्त हों।
एक स्क्रिप्टराइटर ने एक बार मुझे बताया कि जूही चावला में एक अनोखी मासूमियत है।
"वो छोटी-छोटी बात पर ख़ुश हो जाती हैं। इतनी बड़ी स्टार होने के बाद भी आप उनसे घुल-मिल सकते हैं," मुझे बताया गया।
और यह बात बिल्कुल सही है।
जूही चावला से बात करना बेहद आसान है, एक अभिनेत्री, जिसने 1984 में मिस इंडिया का ख़िताब जीत कर हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा और चार साल बाद अपनी पहली हिट, क़यामत से क़यामत तक से हमारा दिल जीत लिया।
लेकिन वो सब कुछ बस संयोग से हो गया, उन्होंने बताया।
"मिस इंडिया कॉलेज से शुरू हुआ," उन्होंने अपनी मीठी आवाज़ में कहा, जो सुनकर हमेशा ऐसा लगता है जैसे वो अपनी हँसी छुपा रही हों। "हमने तो बस ऐसे ही हिस्सा ले लिया क्योंकि बाकी लोग भी हिस्सा ले रहे थे। इसी के बाद से ही मॉडलिंग, और इन चीज़ों (ऐक्टिंग) में मुझे मज़ा आने लगा, और फिर मैंने कहा, व्हाय नॉट!"
जूही ने 1986 में मुकुल आनंद की सल्तनत से अपनी शुरुआत की, जिसमें धर्मेंद्र, सनी देओल, श्रीदेवी और अमरीश पुरी भी थे।
इसी फिल्म में छैल-छबीले करन कपूर ने भी अपनी शुरुआत की थी, जिन्हें बाद में लगा कि उनका बहुत ज़्यादा विदेशी हुलिया बॉलीवुड से मेल नहीं खाता।
"सल्तनत में इतने बड़े स्टार्स के साथ काम करते वक्त मैं इतनी डरी हुई थी कि मैं सचमुच काँप रही थी! मैं कैमरे के सामने आने में और एक मूवी स्टार के सामने खड़े होने में बहुत ज़्यादा घबरा रही थी," जूही ने अतीत को याद करते हुए कहा।
QSQT इससे बिल्कुल अलग, एक "कॉलेज फिल्म" की तरह थी।
"उस समय, मैंने साउथ में भी एक फिल्म की थी (वी रविचंद्रण की प्रेमलोका)। उसमें मुझे कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी, लेकिन मैं इससे बहुत कुछ सीखा। और इसी सीख ने QSQT में मेरी मदद की, जिसे मैंने आसानी से कर दिखाया। मैं बहुत ख़ुशनसीब हूं कि मुझे QSQT मिली," आमिर ख़ान के साथ अपनी ब्लॉकबस्टर फिल्म की बात करते हुए उन्होंने कहा।
उनकी आमिर के साथ गहरी दोस्ती रही जिसमें 1997 में इश्क के फिल्मिंग के दौरान थोड़ी दूरी आ गयी।
"हम कितने स्टुपिड थे!" उन्होंने कहा, "हम बिना बात के झगड़े और कितने अरसे तक हमने बात नहीं की।"
यह "अरसा" सात साल का था, आमिर ख़ान ने हाल के एक रिडिफ़ .कॉम के इंटरव्यू में हमें बताया।
"आख़िरकार, मैंने उनसे दोस्ती कर ली। मैं उनके घर गयी, क्योंकि उन्हें और रीना को न्यूज़ में देखकर मुझे उनकी फिक्र हुई," आमिर और रीना दत्ता के तलाक़ की बात करते हुए उन्होंने बताया।
"मैं उन्हें QSQT के समय से जानती थी, जब दोनों एक-दूसरे से मिल-जुल रहे थे और फिर उन्हीं दिनों में उनकी शादी हो गयी। जब मैं उनसे मिली और मैंने पूछा कि क्या बात है, तब उन्होंने बताया कि उन्हें लग रहा था मैं उनसे बहुत नाराज़ हूं, और इधर मैं सोच रही थी कि वो मुझसे गुस्सा हैं।"
जूही तीन दशकों के अपने करियर पर नज़र डालते हुए अपनी मनपसंद फिल्मों की बात करती हैं।
"मुझे आइना में एक सादी औरत का किरदार निभाना बहुत पसंद आया।" 1993 की फिल्म में जैकी श्रॉफ इनकी ग्लैमरस बहन (अमृता सिंह) का प्यार छोड़कर इस चश्मेवाली भोली भाली पर फ़िदा हो गए।
"राजू बन गया जेन्टलमैन करने में मुझे बहुत मज़ा आया, क्योंकि वो शाहरुख़ के साथ मेरी पहली फिल्म थी, और वो हम सबका काफी मनोरंजन करते थे। वो बहुत ही मज़ेदार और बहुत ही मेहनती इंसान हैं।"
राजू बन गया जेन्टलमैन अज़ीज़ मिर्ज़ा ने डायरेक्ट की थी, जो आगे चल कर जूही और शाहरुख़ की जॉइंट प्रॉडक्शन कंपनी, ड्रीम्ज़ अनलिमिटेड में उनके पार्टनर बने।
"डर में जब यशजी (चोपड़ा) ने मुझे लिया, तो मैं ख़ुशी से सातवें आसमान पर पहुंच गयी, लेकिन साथ ही मुझे इस बात फिक्र भी थी कि मैं यश राज हीरोइन बन पाउंगी या नहीं।"
डर में जूही सनी देओल के साथ नज़र आयीं, जबकि शाहरुख़ ने एक प्यार में पागल ऐंटी-हीरो का किरदार निभाया है।
क्या आज भी उनकी एसआरके से उतनी ही बनती है?
''अरे, वो तो मेरे क्राइम पार्टनर हैं!'' जूही कहते हुए हँस पड़ीं।
''हम एक-दूसरे को राजू बन गया जेंटलमैन के समय से जानते हैं, और यह काफी लंबा समय है। बीच-बीच में छोटे-मोटे झगड़े लगे रहते हैं, लेकिन समय के साथ हम फिर एक हो जाते हैं... जैसे आइपीएल में। लेकिन मैं उनसे बहुत ज़्यादा नहीं मिल पाती...'' वे बोलीं।
जूही को लगा कि "कॉमेडी तो वो अच्छी ही नहीं, बहुत अच्छी कर लेती हैं", इसलिये उन्होंने दरार जैसे संजीदा रोल चुनने का फैसला किया।
"मुझे लगता है मेरे सबसे अच्छे परफॉर्मेंसेज़ में से एक होने के बावजूद दरार बस आयी और चली गयी। मैंने उसमें पूरा दिल लगाया था।" दरार हॉलीवुड की हिट स्लीपिंग विद दि एनेमी से प्रेरित थी, और यह अरबाज़ ख़ान की मूवी डेब्यू थी।
"मैंने अर्जुन पंडित में नेगेटिव किरदार निभाने का पूरा मज़ा लिया। मुझे इतना मज़ा इसलिये आया क्योंकि मैं इसमें एक विलेन वाले किरदार में थी, जो हीरो के लिये मुसीबत खड़ी रहता है, ओह वाव!" जूही हँसते हुए बताती हैं। 1999 की इस फिल्म में एक बार फिर वो सनी देओल के साथ नज़र आयीं।
"फिर भी दिल है हिंदुस्तानी में हमने दुगुना काम किया, फिल्म में भी, फिल्म के बाद भी। और फिल्म के नहीं चलने पर हम सब रोये! आज भी इसकी यादें ताज़ा हैं। एक दिन मैं रोई, और अगले दिन शाहरुख़ बहुत ही दुःखी थे। बहुत बुरा लगा था, लेकिन मुझे लगता है कि हमारे लिये यह अनुभव भी ज़रूरी था।" PBDHH जनवरी 2000 में रिलीज़ हुई थी और यह जूही का पहला ड्रीम्स अनलिमिटेड वेंचर था।
"मुझे बिल्कुल अलग-अलग तरह की कुछ फिल्में करना बहुत ही अच्छा लगा, यह मेरे लिये नयी ताज़ग़ी के एहसास की तरह था, ये फिल्में थीं माय ब्रदर ... निखिल , झंकार बीट्स और तीन दीवारें । मुझे इन फिल्मों में बहुत मज़ा आया जब मुझे पता चल गया कि उन लोगों के पास पैसे नहीं हैं! और मुझे मेक-अप करने नहीं मिलेगा!
''मुझे बिल्कुल सिम्पल रहना था और ऐक्टिंग नहीं करनी थी। मुझे इसमें थोड़ा समय लगा, लेकिन जब मैं यह चीज़ सीख गयी, तो बहुत मज़ा आया।'' इन तीनों फिल्मों में एक ज़्यादा बड़ी, ज़्यादा मैच्योर लगने वाली जूही के संजीदा किरदार दिखाई दिये।
''मुझे भूतनाथ बहुत पसंद आयी! मैं एक ऐसे इंसान के साथ काम कर रही थी जो पहले महेश भट्ट के असिस्टंट हुआ करते थे। और उनकी मस्ती भरी कहानी को बीआर चोपड़ा फिल्म, एक साउंड प्रॉडक्शन हाउस प्रोड्यूस कर रही थी। मैं अमित जी के साथ काम कर रही थी, अब इससे ज़्यादा अच्छी बात क्या हो सकती है? और शाहरुख़ भी।'' डायरेक्टर विवेक शर्मा ने सर, नाराज़, क्रिमिनल और चाहत में भट्स को असिस्ट किया है।
"जब पहली बार मैंने गुलाब गैंग की स्क्रिप्ट सुनी, तो मैं चौंक गयी कि उन्हें लगता है मैं नेगेटिव किरदार भी निभा सकती हूं! मैंने कहा, बिल्कुल नहीं, नहीं हो पायेगा। मुझे लगा सब मुझ पर हँसेंगे। और मैंने सोचा विलेन को तो हारना ही पड़ता है, तो वो लोग माधुरी (दीक्षित) को जिताना चाहते हैं! तो मैंने इसके लिये मना कर दिया।''
गुलाब गैंग में माधुरी दीक्षित एक सेन्ट्रल रोल में नज़र आयीं, जो कि सम्पत पाल देवी की जीवनी पर बनी एक फिल्म थी।
"उन्होंने दुबारा पढ़कर मुझे मनाने की कोशिश की और तब इसमें मेरी दिलचस्पी जागी। मज़ेदार बात यह थी कि माधुरी से पहली मीटिंग में ही हमने कहा चलो इसे कर दिखायें और धमाका कर दें। यह मेरे बेहतरीन परफॉर्मेंसेज़ में से एक था! मुझे लगा मुझे इसके लिये अवॉर्ड मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ!'' जूही फिर हँसीं।
जूही ने गर्मजोशी से अपनी नयी फिल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा के बारे में बात की, जिसमें उनके पुराने को-स्टार अनिल कपूर और उनकी बेटी सोनम भी है।
अनिल कपूर और उनके बीच कितना कुछ बदला है और क्या अब तक वैसा ही है?
"ज़्यादा कुछ बदला नहीं है," उन्होंने कहा। "ये बात और है कि हमने काफी समय से साथ काम नहीं किया है, लेकिन अनिलजी अभी भी वैसे ही हैं। वो दोस्ती, मेहनत और लगन की मिसाल हैं... वो हमेशा से ही ऐसे रहे हैं। वो अपनी फिटनेस का काफी ध्यान रखते हैं। उन्हें देख कर आपको लगेगा ओह माय गॉड, मैं तो कुछ भी नहीं करती।"
"जब हम एक लड़की में काम कर रहे थे, और बाद में जब मैंने फिल्म देखी, तो एक अद्भुत... क्या कहते हैं... उनके किरदार में ख़ूबसूरती दिखाई देती है। एक लड़की उनके बेहतरीन परफॉर्मेंसेज़ में से एक है। और उनके साथ काम करने पर भी मैंने इस चीज़ को महसूस किया है। ऐसा लगता है कि माय गॉड, ये कितना अच्छा अभिनय कर लेते हैं," उन्होंने कहा।
जूही सोनम को 1997 में दीवाना मस्ताना के समय से जानती हैं, जब पूरी टीम 20-दिनों की आउटडोर शूट पर स्विट्ज़रलैंड गयी थी।
अनिल कपूर, उनकी पत्नी सुनीता, उनकी दोनों बेटियाँ सोनम और रिया, (डायरेक्टर) डेविड धवन, उनकी पत्नी लाली, उनके दो बेटे रोहित और वरुण और प्रोड्यूसर केतन देसाई, उनकी पत्नी कंचन और बेटियाँ पूजा और राज राजेश्वरी के साथ जूही और उनकी माँ, सभी के साथ एक बड़ा परिवार तैयार हो गया था।
"हम छोटे-छोटे शैलेज़ में रह रहे थे, होटलों में नहीं," जूही ने बताया। "हम दिन भर काम में उलझे रहते थे और वो सभी साथ मिलकर शॉपिंग, साइटसीइंग या घूमने-फिरने का मज़ा लेते थे। सोनम तब 13 या 14 साल की थी। समय के साथ मैंने उसे ऐक्ट्रेस बनते देखा और उत्सवों में या एयरपोर्ट पर उससे मिलती थी। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं एक दिन उसके साथ काम करूंगी।"
अनिल कपूर के साथ करने को तो कई बातें होंगी, लेकिन सोनम के साथ उन्होंने क्या बात की?
"सोनम बहुत बातूनी है," उन्होंने जवाब दिया। "उसे हमेशा जानना होता है कि अनिलजी के साथ पहले काम करने में कैसा लगता था और क्या कोई बदलाव आया है, और पहले उनका व्यवहार कैसा होता था। दूसरी ओर, मुझे उनकी पीढ़ी के व्यवहार, उनकी सोच, उनके काम करने के तरीके की जानकारी मिली... मैं ज़रूर कहूंगी कि मैंने उससे बहुत कुछ सीखा है।"
एक लड़की समलिंगी संबंधों की कहानी है, जो पहले कभी मेनस्ट्रीम सिनेमा में नहीं दिखी है। तो जूही ने इसे कैसे लिया?
"मैं (डायरेक्टर) शेली चोपड़ा धर से पहली बार मिली, उन्होंने मुझे बैठा कर स्क्रिप्ट पढ़नी शुरू की। शुरुआत में सब कुछ रोमांस, मैच मेकिंग और छोटे सुखी परिवार जैसा था... और मैं सोच रही थी कि ये लोग क्या बना रहे हैं? इसके बाद इंटरवल आता है, और मैं दंग रह गयी! और फिर मैं इस कहानी के अंत को जानने के लिये बेताब हो गयी।"
जूही ने माना कि वो इसमें खो सी गयी थीं।
"जिस तरह से उन्होंने इसे बनाया, जिस तरह से इसे क्लायमैक्स तक पहुंचाया है, मुझे लगता है सब कुछ बेहद ख़ूबसूरती से किया गया है, क्योंकि मैं उन दर्शकों में आती हूं, जिनसे फिल्म बात करती है। मैं उनमें से हूं जो थिएटर में जाकर कोई भी भद्दी चीज़ नहीं देखना पसंद करती, क्योंकि मेरे साथ मेरे बड़े या बच्चे होते हैं। मुझे साफ़-सुथरा इंटरटेनमेंट पसंद है," उन्होंने कहा।
"स्क्रीन पर परिवार के सदस्य बिल्कुल मेरी तरह हैं। तो यह सब कुछ काफी जाना-पहचाना है, फिर भी सब्जेक्ट बिल्कुल नया है। इसने मेरी सोच को बदल दिया और इस फिल्म में सोनम के किरदार जैसे लोगों के प्रति मुझे ज़्यादा उदार बना दिया।"
"पहले जब भी आप ऐसे लोगों (LGBTQ समुदाय के लोग) से मिलते थे, तो सोचते थे, क्या ये अजीब नहीं लगता? लेकिन इस फिल्म में सोनम का किरदार देखने के बाद आपका नज़रिया बदल जाता है, अकेलेपन से जूझती एक बच्ची, औरों से कटी-कटी, उसका डर और अपमान का एहसास... वह खुद को बांध कर रखती है, क्योंकि वह दुनिया में किसी के भी साथ अपनी भावनाऍं बाँट नहीं सकती - अपने सगों के साथ भी नहीं। ये कैसी ज़िंदग़ी है! इससे मुश्किल और क्या होगा?"
"अंत में, मुझे अनिल जी की कही बात बहुत पसंद आयी, यह कोई बीमारी नहीं है, यह पश्चिमी या भारतीय संस्कृति की बात नहीं है। वो बचपन से ही ऐसी है। मैं उससे उसकी खुशी कैसे छीन सकता हूं?"
"और मुझे लगा, मैं यह फिल्म ज़रूर करूंगी!" जूही ने कहा, अपनी आवाज़ में उसी जानी-पहचानी हँसी के साथ।
बातचीत अब जूही की ज़िंदग़ी की अन्य ख़्वाहिशों पर आती है, और हँसी अब बंद हो जाती है।
मोबाइल टावर्स और रेडिएशन का विषय जूही के दिल के काफी करीब रहा है, और वो इसके नुकसानों को लेकर काफी गंभीर हैं।
यह बात उनके लिये *इतनी* महत्वपूर्ण क्यों है?
"मेरे घर के पास कुछ (मोबाइल) टावर्स आ गये, और किसी ने बताया कि ये हमारी सेहत के लिये अच्छे नहीं हैं। तो मैंने खुद इसपर अनुसंधान किया और अपने घर की जाँच कराई। मैंने उन्हें हटवाने की कोशिश की और अंत में सफलता भी पाई। तब से लोग मदद के लिये मेरे पास आने लगे और इसी तरह मैं इस कार्यक्रम में जुड़ी। मुझे नहीं लगता कि मैंने रेडिएशन को चुना है, बल्कि रेडिएशन ने मुझे चुना है," उन्होंने कहा।
"बाद में मेरी समझ आया कि यह एक इतना तकनीकी विषय है कि दुनिया के सबसे अच्छे वैज्ञानिक आकर भी अगर लोगों को समझायेंगे तो भी शायद उनकी समझ में न आये। मेरे जैसे आम लोगों की भाषा बोलने वाले लोग इस काम को कर सकते हैं और सेलेब्रिटी होने से यह काम आसान हो जाता है। मैं इसे एक बातचीत का रूप दे सकती हूं। मुझे इस काम के लिये चुना गया है," उन्होंने कहा।
तो मोबाइल टावर्स में बुराई क्या है?
"मैं इसपर 20-मिनट का प्रेज़ेन्टेशन देती थी, और इसे मैं काफ़ी ख़ूबसूरती से समझा सकती हूं," उन्होंने कहा और फिर काम की बात शुरू की।
"हम बात कर रहे हैं (फोन पर) और मेरी आवाज़ आप तक पहुंचने में एक सेकंड की भी देर नहीं हो रही। ये कैसे होता है? ये होता है हवा में बहने वाली किरणों की मदद से," जूही ने समझाया।
"ये कैसे बहते हैं? इलेक्ट्रिक चार्ज की मदद से। ये किरणें हवा द्वारा फैलती हैं। ये मेरे फोन से मोबाइल टावर तक और फिर अंत में तुम तक पहुंचती हैं।"
"मुंबई में 20 मिलियन लोग रहते हैं। मेरा फोन तुम्हें कुछ ही सेकंड में कैसे ढूंढ लेता है? इसे कैसे पता है? हवा में बहने वाली ये किरणें हमें दिखाई तो नहीं देतीं, लेकिन ये इलेट्रॉनिक कोहरे की तरह फैली हुई हैं।"
"इससे आवाज़ नहीं आती, इसमें गंध नहीं होती और आप सोचते हैं कि ऐसा कुछ है नहीं, लेकिन ऐसा है। और इसलिये सभी फोन काम कर रहे हैं।"
"और आपके फोन तब भी काम करते हैं जब आप उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे होते और यह सिर्फ आपके बगल में मासूम बन कर पड़ा रहता है। यह आपके मेल्स, इंस्टाग्राम, ट्विटर, आपके नोटिफिकेशन्स, व्हॉट्सऐप डाउनलोड़ कर रहा होता है... यह हर समय काम करता रहता है।"
"ज़रा सोचिये, हम सभी के फोन *हर* समय काम करते हैं। आपके आस-पास हवा में कितना कुछ चल रहा है, लेकिन आप देख नहीं पा रहे।"
"और हवा की यह हलचल बढ़ते मोबाइल फोन्स के साथ बढ़ती जा रही है। यह ग्राफ बिल्कुल सीधा ऊपर की तरफ जा रहा है। दुनिया इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन के एक नेटवर्क की तरह है, जो 20 साल पहले ऐसी नहीं थी। इसलिये जन्म से लेकर मृत्यु तक इसके प्रभाव को कोई भी नहीं जान पाया है।"
"कोई भी दवा बाज़ार में लाने से पहले कम से कम उस पर 20 साल तक रीसर्च किया जाता है। साइड इफ़ेक्ट्स क्या है, एफडीए अप्रूवल्स। लेकिन क्या मोबाइल फोन को नुकसानरहित होने का कोई सर्टिफिकेट मिला है, या इसके साइड इफ़ेक्ट्स पर रीसर्च की गयी है? फिर भी, इसे दुनिया पर लाद दिया गया है।"
मोबाइल फोन्स और टावर्स बेहद तेज़ी से बढ़ रहे हैं। क्या यह निराशाजनक नहीं है?
"हाँ, कभी-कभी ऐसा लगता है, उन्होंने जवाब दिया। फिर मैं खुद को याद दिलाती हूं कि मैं लोगों की और अपनी मदद करने में अपने हिस्से की भूमिका निभा रही हूं। मेरे साथ इसपर एक टीम काम करती है। मैं उनसे कहती हूं, हम इसपर अपने विश्वास को टूटने नहीं दे सकते, क्योंकि हम नहीं करेंगे, तो कौन इस काम को करेगा?"
"बदलाव हमेशा संकट की घड़ी में ही होते हैं। जब तक स्थिति गंभीर न हो जाये, आप लोगों को नहीं बदल सकते," जूही ने कहा और पूछा, "क्या बिना किसी गंभीर परिस्थिति के आप अपनी ज़िंदग़ी में कोई बदलाव लायेंगे?"
"हमने अपना एक ऐसा दुश्मन बना लिया है जिसे हम देख नहीं सकते, और यह दुश्मन हमारे मनोरंजन के नाम पर हमारे गले पर फाँसी के फंदे को कसता जा रहा है।," उन्होंने कहा और बताया कि वो फोन का इस्तेमाल हमेशा हेड सेट के साथ करती हैं।
'जैसे-जैसे ये बढ़ेगा, हर चीज़ पर इसका असर पड़ेगा - आपकी पालतू मधुमक्खियों से लेकर पौधे और हर जीवित कोशिका तक इससे प्रभावित होगी लेकिन जब तक हम इसके असर को समझ पायेंगे, बहुत देर हो चुकी होगी। बट चलो, मैं क्या करूं?' जूही ने हँसते हुए अपनी बात ख़त्म की।
बात की गंभीरता पल भर में ग़ायब हो गयी, और जूही अपने खुशमिजाज़ अंदाज़ में लौट आयीं।
हर फिक्र को भूलने का सबसे अच्छा तरीका है बिना किसी रोक-टोक के बेफिक्र होकर गाना - और जब कोई गाने के लिये कहे तो झिझकना नहीं।
यही तो जूही की छुपी हुई ख़्वाहिश है।
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