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'इस दुनिया की हर लड़की लकी है'
By पैट्सी एन
September 23, 2019 00:35 IST

'मैं रोल की लंबाई में विश्वास नहीं रखती।'

'लेकिन हाँ, मैं सजावट की चीज़ नहीं बनना चाहती।'

फोटोग्राफ: Sonam Kapoor/Instagram के सौजन्य से

सोनम कपूर ने अपनी नयी रिलीज़, द ज़ोया फ़ैक्टर  में अपनी क़िस्मत आज़माई है।

कई संजीदा फिल्मों में काम करने के बाद, यह अभिनेत्री एक हल्की-फुल्की फिल्म में काम करने के मूड में है, और उसका कहना है कि उसका नया प्रोजेक्ट बिल्कुल उसके लिये ही बना है।

गबरू दलक़र सलमान के साथ उनकी फिल्म द ज़ोया फ़ैक्टर  को अभिषेक शर्मा ने डायरेक्ट किया है।

"मेरे पिता को हमेशा लगता आया है कि मैं उनके लिये लकी हूं; मेरी बहन भी उनके लिये लकी थी," सोनम ने पैट्सी एन/रिडिफ़.कॉम से कहा।

क्या आपको लगता है कि आप लकी हैं?

इस दुनिया में जन्म लेने वाली हर लड़की लकी है।

हमारे ऊपर अपने परिवारों के लिये बोझ होने का लांछन लगाया जाता है।

मेरे पिता को हमेशा लगता आया है कि मैं उनके लिये लकी हूं; मेरी बहन भी उनके लिये लकी थी।

मुझे लगता है कि हम एक तोहफ़ा होती हैं, इसलिये मैंने मेरे किरदार के लिये ज़ोया नाम चुना, क्योंकि ज़ोया का मतलब होता है 'तोहफ़ा'।

लड़कियाँ होने के नाते, हम सभी अपने परिवारों के लिये लकी हैं।

माता-पिता मानते हैं कि बुढ़ापे में बेटियाँ ही उनका ख़्याल रखेंगी।

फोटो: द ज़ोया फ़ैक्टर  में दलक़र सलमान और सोनम।

क्या आप बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिये नींबू-मिर्ची के टोटके में विश्वास रखती हैं?

हाँ, हमारे घर के बाहर, कार में नींबू-मिर्ची लगी हुई है... हमारी कार में एक छोटी सी मूर्ति भी है।

यात्रा करने से पहले मैं दही-शक्कर खाती हूं।

आपके चाचा संजय कपूर द ज़ोया फ़ैक्टर  में आपके पिता बने हैं। उनके साथ आपकी केमिस्ट्री कैसी है?

मेरे चाचा के साथ मेरी ख़ूब बनती है।

वो चाचा कम, दोस्त ज़्यादा हैं, क्योंकि उनकी उम्र बहुत कम है।

वह बहुत ही अच्छे स्वभाव के हैं, उनके साथ कोई परेशानी नहीं होती, आप जो बात अपने माता-पिता से छुपाते हैं, वो भी उन्हें बता सकते हैं -- जितने ग़लत काम किये हैं, सब!

फोटो: द ज़ोया फ़ैक्टर का प्रचार करती हुई सोनम। फोटोग्राफ: प्रदीप बांदेकर।

आपने प्रमोशन्स में सिर्फ लाल कपड़े ही क्यों पहने हैं?

बस मस्ती के लिये!

फिल्म में जब ज़ोया को लोग लकी मानने लगते हैं, तब वह लाल कपड़े पहनना शुरू कर देती है।

डायरेक्टर ने हमें बताया था कि क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ लाल रुमाल का इस्तेमाल करते थे।

वो ऐसी कई चीज़ें बताते रहते थे।

तो जब ज़ोया सबके लिये लकी बन गयी, तो वह सिर्फ लाल कपड़े पहनने लगी।

तो अचानक फिल्म में मैं सिर्फ लाल कपड़े पहनना शुरू कर देती हूं!

तो मैंने थोड़ी मस्ती के लिये फिल्म प्रमोशन्स में भी ऐसा करने का फ़ैसला किया।

और अगर आपको कोई कलर चुनना होता तो?

मुझे काला रंग पहनना बहुत पसंद है!

फोटो: सोनम और रणबीर कपूर संजू में।

रोल की लंबाई आपके लिये कितना मायने रखती है? आपने भाग मिल्खा भाग, संजू  जैसी फिल्मों में छोटे, लेकिन अहम किरदार निभाये हैं...

मैं रोल की लंबाई में विश्वास नहीं रखती।

लेकिन हाँ, मैं सजावट की चीज़ नहीं बनना चाहती।

मैं अगर नीरजा, द ज़ोया फ़ैक्टर, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, ख़ूबसूरत  या वीरे दी वेडिंग  कर सकती हूं, तो मैं संजू  या मिल्खा सिंह  भी कर सकती हूं।

अगर मुझे तीन सीन्स और दो गानों के साथ फिल्म करनी हो, तो मैं संजू  या भाग मिल्खा भाग  जैसी फिल्म करना चाहूंगी, जिसमें मेरा किरदार अहम हो और कहानी को आगे ले जाये।

साथ ही आपको आपके चहेते लोगों के साथ काम करने की भी ज़रूरत होती है, जैसे दिल्ली 6 में।

वह मेरे मनपसंद परफॉर्मेंसेज़ में से एक है।

कुछ अलग करने वाली फिल्मों में काम करना महत्वपूर्ण है।

मुझे पैडमैन  पर बेहद नाज़ है।

यह मेरे बेहतरीन परफॉर्मेंसेज़ में से एक है और मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि मैं ऐसी किसी फिल्म में काम करना पसंद करूंगी।

मुझे (डायरेक्टर) आर बल्की के साथ काम करना पसंद है।

वो ऐसे इंसान हैं कि मैं आँख बंद करके उनके साथ काम करने के लिये हाँ कर दूंगी।

वो महिलाओं की काफ़ी इज़्ज़त करते हैं, और उनके काम के अंदाज़ में बहुत पारदर्शिता है।

यही बात राकेश ओमप्रकाश मेहरा, राजकुमार हिरानी, राम माधवानी और शशांक घोष के बारे में कही जा सकती है।

फोटो: एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा  में सोनम रेजिना कैसांड्रा के साथ

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा एक अच्छी फिल्म थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। आपको क्या लगता है, इसमें कहाँ कमी रह गयी?

वो मेरी सबसे अच्छे रीव्यू पाने वाली फिल्मों में से एक थी।

मुझे लगता है कि लोगों को जाकर इसे देखने में डर लग रहा था।

साथ ही, मुझे लगता है कि यह फिल्म अपने समय से कहीं आगे थी, क्योंकि इसने OTT प्लैटफॉर्म्स पर शानदार प्रदर्शन किया है। यह OTT प्लैटफॉर्म पर सबसे सफल फिल्मों में से एक है।

तो लोग एक तरह के लांछन के कारण मूवी थिएटर में जाने की जगह अकेले इसे देखना पसंद करते हैं।

मुझे मेसेजेज़ मिलते हैं, जिनमें लिखा होता है कि इस फिल्म की वजह से मैं अपने माता-पिता के सामने खुल सकी/सका या इस फिल्म के कारण मैंने ख़ुद को स्वीकार कर लिया।

फोटो: सोनम नीरजा में।

हर फिल्म आपको कुछ सिखाती है। आपने अपनी फिल्मों से क्या सीखा है?

नीरजा  ने मुझे सिखाया कि डर से आपको कभी डरना नहीं चाहिये।

बहादुर होने का यह मतलब नहीं कि आपको किसी बात का डर न हो।

बल्कि इसका मतलब है अपने डर की आँखों में आँखें डाल कर उसका सामना करने की ताक़त होना।

मैंने यही बात सीखी है -- डरो, लेकिन आगे बढ़ो।

संजू में, मुझे मीडिया की ताक़त के बारे में पता चला।

मुझे पता चला कि मीडिया कैसे आपके बारे में लोगों की सोच बदल सकता है।

कई सेलेब्रिटीज़ मीडिया को अपना दुश्मन मानते हैं। मेरे लिये, मीडिया एक दोस्त है।

मैं इसे एक सहकार्य के रूप में देखती हूं।

क्योंकि आख़िरकार, आपकी ज़िंदग़ी और आपकी छवि आपके हाथों में है।

मीडिया से मेरा रिश्ता कभी ख़राब नहीं रहा है। क्योंकि मैं जब यहाँ आई तब मैं छोटी और नादान थी, लेकिन घमंडी नहीं।

मैं उनके साथ खुली और अच्छी रहती हूं और इसलिये वो भी मेरे साथ खुले और अच्छे रहते हैं।

मैं यह भी सीखा है कि भले ही आप देश के सबसे बड़े फिल्म निर्माता क्यों न हों, लोगों के साथ आपको विशेष व्यवहार करना पड़ता है।

मैंने आज तक राजू हिरानी का सेट्स पर किसी के साथ ख़राब व्यवहार नहीं देखा।

वो भले ही देश के सबसे सफल फिल्म निर्माता हैं, लेकिन वो सबसे ज़्यादा विनम्र भी हैं।

मैं आँख बंद करके उनके साथ दुबारा काम करने के लिये तैयार हो जाऊंगी।

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा  एक महत्वपूर्ण फिल्म थी।

वो नीरजा  जितनी सफल तो नहीं हुई, लेकिन मुझे उतना ही सम्मान मिला।

पैडमैन  में, मुझे उन चीज़ों का एहसास हुआ, जिन्हें हम अनदेखा कर देते हैं।

जैसे, हम एक छोटे कस्बे में शूट कर रहे थे, और जब हमने पैड्स की चर्चा शुरू की, धीरे-धीरे हमारे आस-पास के लोग जाने लगे। उन्होंने कहा कि वो शूट नहीं करेंगे, क्योंकि 'ये गंदी चीज़ है।'

और वो स्थानीय लोग नहीं थे, बल्कि जूनियर आर्टिस्ट्स थे।

आपको समझना चाहिये कि भारत सिर्फ बॉम्बे और दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। हम कॉस्मोपॉलिटन शहरों के लोग हैं और एक-दूसरे से काफ़ी अलग हैं।

भारत का दिल अभी भी विकसित नहीं हुआ है।

आज भी लोग इसे गंदी चीज़ मानते हैं।

उन्हें समझ में नहीं आता कि अगर पीरियड्स न हों, तो बच्चे भी नहीं हो सकते।

वीरे दी वेडिंग  में, मैंने जाना कि करीना कपूर को और मुझे और भी फिल्मों में साथ काम करना चाहिये।

फीमेल को-स्टार्स सबसे अच्छी को-स्टार्स होती हैं; और मुझे उनके साथ काम करने में काफ़ी मज़ा आया।

फोटो: दलक़र और सोनम द ज़ोया फ़ैक्टर में।

आपने द ज़ोया फ़ैक्टर से क्या सीखा है?

द ज़ोया फ़ैक्टर  में, मैंने सीखा कि कभी-कभी हल्की-फुल्की फिल्में करना भी ज़रूरी है।

मैंने बहुत सारी संजीदा फिल्मों में काम किया है और अब मुझे कुछ हल्का करना था। हालांकि मैंने वीरे  की थी, जो हल्की-फुल्की फिल्म थी, लेकिन वह मेरा प्रॉडक्शन होने के कारण बहुत ज़्यादा मुश्किल था।

मैं उसका पूरा मज़ा नहीं ले पायी।

मुझे पता है कि स्वरा (भास्कर) और बेबो ने उसका पूरा मज़ा लिया।

मुझे भी मज़ा आया, लेकिन बहुत सारे टेन्शन भी थे।

मैं अपनी वैन में बैठी बाल और मेकअप कर रही हूं, और प्रॉडक्शन की मीटिंग भी साथ ही साथ चल रही है।

हल्की-फुल्की फिल्में करने का अलग ही मज़ा है!

पैट्सी एन
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