अपर्णा कुमार ने न्युमोनिया और मौसम की मार से लड़ कर यह इतिहास रचा
अंटार्कटिका महाद्वीप सबसे कम पहुंच वाला महाद्वीप है।
दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी की सबसे ठंडी और सबसे शुष्क जगहों में से एक है।
एक सामान्य दिन का औसत तापमान माइनस 37 डिग्रीज़ से लेकर माइनस 48 डिग्रीज़ सेंटीग्रेड के बीच होता है।
अगर आप रोमांच प्रेमी हैं, स्की करना जानते हैं और स्लेज चला का हज़ारों कैलरीज़ जलाने का हौसला रखते हैं, तो आपको वहाँ जाने वाले पहले दो लोगों -- रोअल्ड अमड्सेन (1911 में) और रॉबर्ट एफ स्कॉट (1912 में) के नाम का बोर्ड देखने का सौभाग्य मिलेगा।
हर साल, कई ट्रेकर्स यहाँ आने की चुनौती स्वीकार करते हैं। उनमें से कुछ ही सफल हो पाते हैं।
जनवरी 13, 2019 को अपर्णा कुमार, 44, वर्तमान में इंडो तिबेतन सीमा पुलिस के साथ कार्यरत एक भारतीय पुलिस अधिकारी ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को फोन करके बताया कि उन्होंने दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा और उत्तर प्रदेश पुलिस का झंडा फहरा दिया है।
वर्तमान में दो बच्चों की माँ, उत्तर प्रदेश संवर्ग में 2002 बैच की आइपीएस अधिकारी पृथ्वी के दक्षिणी छोर पर विजय पाने वाली पहली महिला आइपीएस और आइटीबीपी अधिकारी बनीं।
बहुत ज़्यादा रोमांच प्रेमी न होने के बावजूद अपर्णा ने 8 दिनों में 111 मील लंबे कठिन ट्रेक को पूरा किया और भारत के लिये इतिहास रचा।
यात्रा के दो सप्ताह बाद Divya Nair/Rediff.com से बात करते हुए अपर्णा ने बताया कि वह कर्नाटक में बीते अपने बचपन को काफी पीछे छोड़ आयी हैं, जिसमें "बाहर खेलना, स्कूल, होमवर्क और बहुत सारी किताबें पढ़ना शामिल था।"
"हमारे समय में उड़ान नामक एक टीवी सीरियल आया करता था, जिसने मेरे ऊपर गहरी छाप छोड़ी और मुझे आइपीएस के लिये प्रेरित किया। मैंने नेशनल लॉ स्कूल, बंगलुरू से BA LLB की पढ़ाई की और वर्दीधारी सेवाओं से बहुत ज़्यादा प्रेरित हो कर आइपीएस को चुना।"
पिछले छः वर्षों में, आधुनिक पर्वतारोहण में प्रशिक्षित अपर्णा ने छः महाद्वीपों में सफलतापूर्वक जानी-मानी चोटियों पर जीत हासिल की है।
मई 2016 में उत्तरी हिस्से (तिब्बत में) से माउंट एवरेस्ट पर जीत हासिल कर चुकी अपर्णा ने दक्षिणी ध्रुव की यात्रा के लिये छः से सात महीने का प्रशिक्षण लिया और स्की करना सीखा।
"मैंने लंबी दूरी दौड़ने, अपने कार्डियो, सहनशक्ति और ताकत को बेहतर बनाने पर मेहनत की। मैंने 30 किलो से ज़्यादा वज़न के साथ स्लेड खींचने का प्रशिक्षण लिया और साथ ही खुद को कठोर मौसम की मार और यात्रा की कठिनाइयों के लिये तैयार किया।," उन्होंने बताया।
यात्रा से ठीक एक महीने पहले, अपर्णा न्युमोनिया से पीड़ित पाई गयीं।
"मैं नवंबर में 15 से 20 दिन तक बिस्तर पर रही और दिसंबर में ठीक से अभ्यास नहीं कर पायी। मैं अपनी क्षमताओं को लेकर चिंतिंत थी और मुझे यात्रा के दौरान अस्वस्थ होने का डर था।"
न्युमोनिया के अलावा, यात्रा की एकमात्र महिला सदस्या, अपर्णा के लिये और भी चुनौतियाँ इंतज़ार कर रही थीं
"बहुत ज़्यादा सर्दी, तेज़ ठंडी हवाऍं और कम दृश्यता इस सफर की सबसे बड़ी चुनौतियाँ थीं। ऐसे मुश्किल मौसम में अपने हाथों को गर्म रखना बहुत मुश्किल काम था। बहुत ज़्यादा सावधानी बरतने के बाद भी मेरी नाक पर फ्रॉस्टबाइट (शीतदंश) का थोड़ा प्रभाव हो गया था," उन्होंने बताया।
इस ट्रेक में आपको खाने और ऊर्जा के स्रोत की पूरी योजना बनानी पड़ती थी। अपर्णा ने इसकी योजना बारीकी से बनाई हुई थी, इसलिये वह अपनी मंज़िल पर ध्यान देने में सफल रहीं।
"नाश्ते में मैं अलग-अलग फ़्लेवर्स के सीरियल्स, लंच में नूडल्स और डिनर में ज़्यादातर चावल और चिकन खाती थी। हम पैकेट्स में गर्म पानी डालते थे और उन्हें 10 से 15 मिनट बाद खाते थे। पूरे दिन स्कीइंग के बाद मैं एनर्जी बार्स, जेल्स और मसल रिकवरी पाउडर लेती थी," उन्होंने याद करते हुए बताया।
"ऐसी विषम परिस्थितियों में शरीर की स्थिति बिगड़ने लगती है, इसलिये अपना ध्यान रखना बेहद ज़रूरी होता है। मैंने ज़रूरी दवाऍं साथ रखी थीं और हमेशा अपने शरीर की प्रतिक्रियाओं, संकेतों और किसी भी अस्वस्थता के लक्षण की पूरी जानकारी रखती थी।"
इंडो-तिबेतन सीमा बल, उनकी माँ और उनके पति के सहयोग के बिना वह इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकती थी।
"मेरी माँ मेरी ताकत और प्रेरणा है। जब मैं यात्रा पर जाती हूं, तो मेरी माँ ही मेरे बच्चों का ध्यान रखती है। मेरे पति एक सच्चे हीरो हैं, जो मेरे दूर रहने पर सभी लॉजिस्टिक्स, आर्थिक ज़िम्मेदारियों और हर चीज़ का ध्यान रखते हैं।"
अपर्णा की अगली मंज़िल है अलास्का का माउंट डेनाली।
"सात महाद्वीपों की यह आखिरी चोटी बची रह गयी है। मेरा सपना है सातों शिखर-सम्मेलनों और एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम को पूरा करना।"
जब हमने उनसे पूछा कि वह घर, करियर और अपनी अभिलाषा के बीच संतुलन कैसे बनाती हैं, तो उन्होंने कहा कि सभी महिलाऍं मल्टी-टास्किंग में पारंगत होती हैं।
"अपने करियर और अभिलाषा, दोनों को हासिल करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन असंभव नहीं है। अगर आप समय पर नियंत्रण रखना सीख लें, अनुशासित रहें, तो कड़ी मेहनत, परिवार और शुभचिंतकों के सहयोग से करियर और अभिलाषा दोनों को हासिल करना संभव है।"
अपने पर्वतारोहण के सफर के द्वारा वह दुनिया भर की महिलाओं को बताना चाहती हैं कि "सपनों, अभिलाषाओं और लक्ष्यों को पाने की कोई उम्र नहीं होती।"
"हमें खुद को सीमाओं में बांध कर नहीं रखना चाहिये, हमें सभी ऊंचाइयों को छूने और नयी संभावनाओं को तलाशने के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये।"
"हमें अपने आप से निराश नहीं होना चाहिये, हमेशा कोशिश करनी चाहिये और अपने सपनों या अभिलाषाओं को कभी छोड़ना नहीं चाहिये।"
"हमें ज़रूरत है दुनिया को बदलने, और बदलाव के द्योतक बनने की।"
"हमें अगली पीढ़ी को एक मंच देना चाहिये और उन्हें प्रेरित करना चाहिये।"
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