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किस प्रकार एक 17 वर्षीय किशोर भारत के प्रवालों और समुद्री जीवों की रक्षा कर रहा है
By दिव्या नायर
July 22, 2019

'समुद्र की सतह ऊपर उठ रही है, ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। महासागर का तापमान बढ़ रहा है। और यह प्राकृतिक नहीं है।'

'एक करोड़ साल में ऐसा कभी नहीं हुआ, इसलिये हमें इस बारे में कोई ठोस कदम उठाना चाहिए, इससे पहले कि देर हो जा,' मुंबई के एक किशोर सिद्धार्थ पिल्लई ने कहा, जिसने कोरल ब्लीचिंग (प्रवाल विरंजन) की रोकथाम करने वाली एक तकनीक विकसित की है, जो हज़ारों समुद्री जीवों को लुप्त होने से बचा सकती है।

फोटो: सिद्धार्थ पिल्लई सीमेंट डोलोमाइट से बनी कृत्रिम चट्टानों के साथ, जिन्हें बाद में पुदुच्चेरी में समुद्र में डाला गया। फोटोग्राफ: सिद्धार्थ पिल्लई के सौजन्य से

जैसा कि आप सभी जानते हैं, पृथ्वी का 2/3 हिस्सा पानी और 1/3 हिस्सा थल है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुर्लभ प्राणियों समेत 30 प्रतिशत समुद्री जीव समुद्री पर्यटन और ग्लोबल वॉर्मिंग से होने वाली कोरल ब्लीचिंग के कारण लुप्त होने की कग़ार पर हैं।

मुंबई के बी डी सोमानी स्कूल के छात्र, 17-वर्षीय सिद्धार्थ पिल्लई कोरल ब्लीचिंग की रोकथाम द्वारा समुद्री जीवों को सुरक्षित रखने वाली कृत्रिम 3डी प्रिंटिंग तकनीक विकसित करने वाले देश के सबसे युवा योगदाताओं में से एक हैं।

"मुझे हमेशा से ही जल-जीवन से लगाव रहा है। मुझे गोता लगाना बेहद पसंद है। मैं पिछले पाँच सालों से अलग-अलग क्षेत्र में गोता लगाता आया हूं। मैं कह सकता हूं कि इतने वर्षों में पर्यावरण से मेरा लगाव और भी ज़्यादा बढ़ गया है," स्क्यूबा डाइविंग में मास्टर्स सर्टिफिकेट हासिल कर चुके सिद्धार्थ ने रिडिफ़.कॉम की दिव्या नायर से कहा।

अप्रैल 2018 में, अंडमान और निकोबार की यात्रा के दौरान सिद्धार्थ ने कोरल ब्लीचिंग के प्रभाव के बारे में जाना।

"मैं दंग रह गया," स्थिति की गंभीरता समझाते हुए उसने कहा।

'कोरल्स या पॉलिप्स एक प्रकार के समुद्री जीव हैं, जो समुद्रतल पर चूने के पत्थरों या चट्टानों पर पनपते हैं। जब समुद्र का तापमान 31 डिग्री से अधिक हो जाता है, तो कोरल्स (प्रवाल) उनके ऊतकों पर जी रहे शैवालों (प्रवालों को 90 प्रतिशत ऊर्जा उन्हीं से प्राप्त होती है) को अलग कर देते हैं, जिनसे वे बिल्कुल सफ़ेद पड़ जाते हैं। ऐसा होने के बाद 30 दिनों के भीतर प्रवाल मर जाते हैं। इसके बाद उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता।

कोरल्स (प्रवाल) समुद्र के परितंत्र को संतुलित करने का काम करते हैं। उनके मर जाने से उन पर निर्भर कई पौधे और जीव प्रभावित होते हैं, इसके कारण कई दुर्लभ प्रजातियां लुप्त भी हो रही हैं, सिद्धार्थ ने समझाया।

मई 2018 में, पुदुच्चेरी की यात्रा के दौरान जब सिद्धार्थ और उसकी छोटी बहन माया गोता लगाने के लिये उतरे, तो उनका दिल टूट गया।

"नीचे मरे हुए कोरल्स की परतें देख कर हमें काफ़ी दुःख हुआ," उसने याद किया। हालांकि मैंने कोरल ब्लीचिंग और लुप्त होते प्राणियों के बारे में पढ़ा था, लेकिन मुझे पता नहीं था कि स्थिति इतनी गंभीर है।"

मुंबई वापस लौटने पर सिद्धार्थ बेचैन हो गया। यह बात दिमाग़ से निकालना उसके लिये मुश्किल था।

"मैं कुछ अलग करना चाहता था। मैंने कृत्रिम चट्टानों के बारे में पढ़ा था, तो मैंने सोचा 3डी प्रिंटिंग की मदद से चट्टान तैयार करके उन्हें समुद्रतल में छोड़ा जा सकता है।

फोटो: इस प्रोजेक्ट में सिद्धार्थ के साथ उसकी बहन माया भी शामिल थी।

उसने चर्चगेट में स्थित आविष्कारों पर आधारित संगठन, क्युरियोसिटी जिम में दाखिला लिया, जहाँ उसने 40 दिनों के कोर्स में 3डी प्रिंटिंग की तकनीकों को सीखा।

साथ ही उसने एक समुद्र जीव-वैज्ञानिक और टेम्पल रीफ़ फाउंडेशन की CEO, सुनेहा जगन्नाथन से संपर्क किया, जो पहले से ही प्रवाल की चट्टानों को वापस लाने और समुद्री जीवन को सुरक्षित रखने पर काम कर रही हैं। उन्होंने उसे आवश्यक संसाधन देने का वादा किया और इस प्रोजेक्ट में उसका मार्गदर्शन किया।

तीन महीनों में सिद्धार्थ ने प्राकृतिक कोरल बेड (प्रवाल आधार) जैसी दिखने वाली एक कृत्रिम 3डी संरचना तैयार करने की शुरुआत की, जिसे समुद्र में डाला जा सके।

लेकिन यह काम उतना आसान नहीं था, जितना उसने सोचा था।

"यह संरचना बनाना मुश्किल था। इसमें छेद होने चाहिये, दरारें होनी चाहिये और यह प्राणियों के पनपने में सहायक होना चाहिए।"

उसके द्वारा बनाई गयी पहली डिज़ाइन प्लास्टिक का नमूना थी। उसने इसे अपनी बाल्कनी में बनाया था।

"वह बहुत ही ख़राब बनी थी," उसने कोशिशों के दौरान हुई गलतियों को स्वीकार करते हुए कहा।

"साँचा तैयार हो जाने के बाद, हमने सीमेंट और डोलोमाइट की मदद से ब्लॉक्स तैयार किए (कैल्शियम मैग्नीशियम कार्बोनेट से बने हुए)। मैंने एक कंपनी की मदद ली, जो इन नये प्रकार के ब्लॉक्स को प्रिंट करने के लिये तैयार हो गई। ब्लॉक्स को दरारों के साथ इस प्रकार तैयार किया गया था, कि आवश्यकतानुसार बढ़ाने और फैलाने के लिये उन्हें एक-दूसरे के ऊपर रखा जा सके।

"इसमें दरारें और छेद बनाए गये थे ताकि पॉलिप्स इनसे जुड़ सकें और इसे अपना घर बना सकें। प्रत्येक ब्लॉक का वज़न 10 किग्रा है। मैंने इस तकनीक को पेटेंट कर लिया है। लेकिन यह एक प्रयोग था," सिद्धार्थ ने आगे कहा।

फोटो: टेम्पल एडवेंचर्स नामक गोताखोर टीम के सदस्य, जिन्होंने सीमेंट ब्लॉक्स को समुद्र में डालने में सिद्धार्थ की मदद की।

सिद्धार्थ ने अपने माता-पिता - पिता सुधीर पिल्लई, जो कार्डियोलॉजिस्ट हैं, और माँ नीता जैन, जो फिज़िशियन हैं - का धन्यवाद किया, जिन्होंने इसमें शुरुआती निवेश किया था। वह जल्द ही समझ गया कि इस प्रोजेक्ट को और भी निवेश की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिये उसने केटो नामक क्राउडसोर्सिंग प्लैटफॉर्म पर लोगों की सहायता लेना शुरू किया।

"मेरे माता-पिता ने कभी पुदुच्चेरी की यात्रा के मेरे फैसले पर सवाल नहीं उठाए। और न ही मेरे काम पर कभी आपत्ति जताई। मैंने न कभी उनसे पूछा और न ही कभी इस बात का हिसाब किया कि इसमें कितने पैसे लग चुके हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी पैसों के लिये मना नहीं किया," उसने बताया।

सिद्धार्थ ने जनता से रु 150,000 की राशि प्राप्त की।

अक्टूबर 2018 में, अपने प्रोटोटाइप की जाँच के लिये वह अपनी बहन के साथ पुदुच्चेरी गया।

इस केंद्रशासित प्रदेश की गोताखोरों की एक टीम, टेम्पल एडवेंचर्स की मदद से सिद्धार्थ ने 200 सीमेंट डोलोमाइट ब्लॉक्स समुद्रा में छोड़े।

पिछले महीने उसने पुदुच्चेरी जाकर देखा कि उसे कुछ सफलता मिली है या नहीं।

उन ब्लॉक्स पर समुद्री जीवों को पनपता देख कर उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा।

फोटो: "उन पर कोरल (प्रवाल) का विकास हो रहा था और श्रिम्प्स (झींगे) रह रहे थे," सिद्धार्थ ने बताया।

"मैं पहले से डाले गये ब्लॉक्स पर 200 और ब्लॉक्स डालने की योजना बना रहा हूं। इस बार ये ब्लॉक्स और भी बड़े और भारी होंगे," उसने कहा।

सिद्धार्थ ने अपने चहेते कलाकार को श्रद्धांजलि देते हुए, अपने प्रोजेक्ट का नाम 'बेनिंगटन्स रीफ़' रखा है, जो 2017 में स्वर्गवासी हुए जाने-माने अमरीकी संगीतज्ञ और लिंकिन पार्क के मुख्य गायक चेस्टर बेनिंगटन की याद में रखा गया है।

"ग्लोबल वॉर्मिंग और मौसम का बदलाव एक हक़ीक़त है," सिद्धार्थ ने कहा। "अब आप इसे अनदेखा नहीं कर सकते। समुद्र की सतह ऊपर उठ रही है, ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। महासागर का तापमान बढ़ रहा है। और यह प्राकृतिक नहीं है। एक करोड़ साल में ऐसा कभी नहीं हुआ, इसलिये हमें इस बारे में कोई ठोस कदम उठाना चाहिए, इससे पहले कि देर हो जाए।"

तो हम क्या कर सकते हैं?

"हमें जागरुकता बढ़ानी चाहिए। दुर्भाग्य से यह पीढ़ी इस बात को नहीं समझती कि उनके फैसले किस तरह भविष्य को प्रभावित करते हैं। मुझे लगता है कि स्कूल के स्तर पर इस बारे में कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। बच्चों को पृथ्वी के साथ कदम मिला कर चलना सिखाना चाहिए। समुद्री पर्यटन और भी ज़िम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए।"

"जो हो चुका है, उसे आप बदल नहीं सकते, लेकिन आप उसके परिणामों को ज़रूर टाल सकते हैं। आप पर्यावरण के प्रति लापरवाह नहीं बने रह सकते।"

दिव्या नायर
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