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कैसे एक बस कंडक्टर अपने बेटे के क्रिकेट के सपनों को राह दिखा रही है
By हरीश कोटियन
September 23, 2019 00:00 IST

सितंबर 14 तक, वैदेही अंकोलेकर मुंबई की प्रसिद्ध बेस्ट बसों में एक बस कंडटर थीं।

अब उन्हें पूरा देश भारत के नये उभरते क्रिकेट हीरो की माँ के रूप में जानता है।

इस शनिवार उनके बेटे अथर्व ने अपनी गेंदबाज़ी के दम पर भारत को एशिया कप अंडर-19 का ख़िताब जिताया।

हरीश कोटियन/रिडिफ़.कॉम इस अकेली माँ से मिले, जिसे अपने बेटे की सफलता पर गर्व है।

 

फोटो: रविवार रात मुंबई पहुंचने पर अथर्व अंकोलेकर, दायें, का स्वागत उसकी माँ ने किया।

पाँच साल में पहली बार वैदेही अंकोलेकर काम से जल्दी लौटने के लिये आतुर थीं।

दो दिन पहले काम पर न आने के कारण -- जब उनका छोटा बेटा पार्थ बीमार था -- उन्हें शनिवार को काम पर आना पड़ा था, जो उनके परिवार के लिये एक ऐतिहासिक दिन बन गया।

BEST (बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाय ऐंड ट्रांसपोर्ट) में उनके मददगार अधिकारियों ने बस कंडक्टर वैदेही को ऑफ़िस से जल्दी निकलने की इजाज़त दे दी, जिसके पीछे एक ख़ास कारण था।

उनका 18-वर्षीय बेटा अथर्व कोलंबो में भारत के लिये अंडर-19 एशिया कप फाइनल खेल रहा था और वैदेही इस मैच को भला कैसे छोड़ सकती थीं।

और यह पहला मौका था, जब उन्होंने अपने बेटे को लाइव खेलते देखा।

"मैं उस दिन काम से जल्दी निकल गयी, लगभग 2 बजे, ताकि मैं मैच देख सकूं," उन्होंने रिडिफ़.कॉम से कहा।

बायें हाथ के स्पिनर अथर्व ने पाँच विकेट लेकर इस दिन को अपनी माँ के लिये और भी यादग़ार बना दिया, जिसमें आख़िरी 2 विकेट भी शामिल थे, जिनकी मदद से भारत इस कम स्कोर वाले रोमांचक मुकाबले में बांग्लादेश को 5 रनों से मात देने में सफ़ल रहा।

टाइटल के इस अंतिम मुकाबले में अपने बेटे का धमाकेदार प्रदर्शन देख कर वैदेही की ख़ुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि उन्हें पता है कि क्रिकेट की प्रतिस्पर्धा से भरी दुनिया में युवा खिलाड़ी के लिये हर मौके का लाभ लेना ज़रूरी है।

मैंने उससे हमेशा कहा है कि पहला मौका हो या आखिरी, तुम्हें ख़ुद को साबित करना ही होगा। अगर तुम टीम में रहना चाहते हो, तो पहली बार में ही तुम्हें अपना हुनर दिखाना होगा, क्योंकि दूसरा मौका मिलने की कोई गारंटी नहीं होती। जब भी मौका हाथ लगे, उसका पूरा लाभ लो और अपना बेहतरीन प्रदर्शन करो।

"उसने फाइनल में भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई, लेकिन उसकी पूरी टीम के सहयोग के बिना यह संभव नहीं होता। यह जीत अथर्व ने अकेले हासिल नहीं की है, लेकिन बांग्लादेश को जीत के लिये 6 रनों की ज़रूरत होने पर उसने जो आख़िरी दो विकेट चटकाये, वे मैच के लिये निर्णायक रहे।

"मेरे लिये उसे इंडिया (अंडर-19) जर्सी में देखना बेहद ख़ास पल था। मुझे गर्व है कि वह भारतीय टीम के लिये खेल रहा है और फाइनल की जीत में उसक योगदान से मुझे और भी ज़्यादा ख़ुशी मिली है," वैदेही ने कहा।

फोटो: वैदेही अंकोलेकर, दायें, एक दोस्त के साथ।

वैदेही ने बताया कि 2010 में उनके पति विनोद की अचानक मौत हो जाने के बाद उन्होंने बहुत ही ख़राब समय देखा है। शुरुआत में उन्होंने अपनी दिनचर्या चलाने के लिये ट्यूशन्स पढ़ाने शुरू किये थे, जिसके बाद 2014 में उन्होंने बेस्ट में बस कंडक्टर की नौकरी शुरू की।

"उसके पिता को मलेरिया और जॉन्डिस (पीलिया) हुआ था और हमें आखिरी घड़ी तक बीमारियों का पता नहीं था। हमारे लिये वह बेहद मुश्किल घड़ी थी। उससे बीस दिन पहले मेरे पिता का देहांत हुआ था। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि अथर्व के पिता के साथ ऐसा होगा। वह बिल्कुल तंदुरुस्त थे, उनका वज़न लगभग 90 किग्रा था। न कभी शराब पीते थे, न सिगरेट, और न कभी चाय पीते थे।

"वह अपने बच्चों के साथ बूस्ट वाला दूध पिया करते थे। यह सब बहुत तेज़ी से हुआ। उनके अस्पताल में भर्ती होने के बाद कुछ दिनों के भीतर ही यह सब कुछ हो गया," उन्होंने याद किया।

"मेरे पति के देहांत के बाद मैंने ट्यूशन्स पढ़ाना शुरू किया। चार साल बाद मुझे बेस्ट में नौकरी मिल गयी। मेरे लिये सिर्फ कंडक्टर की ही नौकरी थी, जिसे कोई विकल्प न होने के कारण मैंने स्वीकार कर लिया। मुझे अपने परिवार की रोज़ी-रोटी चलानी थी।

"ट्यूशन्स से होने वाली कमाई परिवार चलाने के लिये और अथर्व के स्कूल और क्रिकेट का खर्च उठाने के लिये काफ़ी नहीं थी। शुक्र है कि उसके स्कूल के कोच सुरेन अहिरे, पारले तिलक विद्यालय (विले पार्ले ईस्ट, उत्तर पश्चिम मुंबई) ने उसकी स्कूल की फ़ीस और क्रिकेट के खर्च की ज़िम्मेदारी ले ली। उन्होंने मुश्किल घड़ियों में हमारी इतनी मदद की है; कि मेरा परिवार उन्हें भगवान मानता है क्योंकि जब अपने परिवार ने भी हाथ खड़े कर दिये थे, यब उन्होंने आगे बढ़ कर हमारी मदद की है।

"उस दौर में मेरे बच्चों ने मेरा बहुत सहयोग किया और आज भी करते आ रहे हैं। मैं सुबह 5.30 बजे ही घर से निकल जाती हूं। पहले हमारा एक छोटा 10x10 (स्क्वेयर फीट) का कमरा था और पानी का नल घर के बाहर था। दोनों बच्चे नल से पानी भरते थे, क्योंकि मैं काम पर होती थी। नल से पानी भरने के बाद वे घर के बाक़ी काम करते थे और उसके बाद स्कूल जाते थे।

"अथर्व बहुत लंबा है, लेकिन हमारा घर इतना छोटा था कि वह कभी सीधा नहीं सो पाता था। कमरा उतना लंबा नहीं था। मैं उसे मुड़ कर सोने के लिये कहती थी। वो बहुत ही मुश्किल दिन थे," वैदेही ने याद किया।

फोटो: अथर्व अंकोलेकर शनिवार, सितंबर 14, 2019 को कोलंबो में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ एशिया कप अंडर-19 फाइनल खेलते हुए।  फोटोग्राफ: Asian Cricket Council/Twitter

मरोल बस डेपो, उत्तर पश्चिम मुंबई में नियुक्त वैदेही शाम को ट्यूशन्स भी पढ़ाती हैं, ताकि उनके बेटों को हर सुख-सुविधा मिल सके; ख़ास बात यह है उनके क्रिकेट करियर को कभी अनदेखा नहीं किया गया।

दो बेटों की इस माँ का दिन सुबह 4 बजे से शुरू हो जाता है, क्योंकि उन्हें काम पर निकलने से पहले बेटों के लिये खाना पकाना पड़ता है और काम से वह देर शाम को लौटती हैं।

"मैं सप्ताह में छः दिन काम करती हूं, और रविवार को मेरी छुट्टी होती है। मैं रोज़ सुबह 4 बजे उठ कर अपने बच्चों के लिये खाना बनाती हूं। सुबह 6 बजे मैं अपने छोटे बेटे (पार्थ) को अंधेरी ईस्ट बस स्टॉप (उत्तर पश्चिम मुंबई) पर छोड़ती हूं, जहाँ से वह अपने स्कूल और क्रिकेट प्रैक्टिस के लिये दादर (उत्तर मध्य मुंबई) की बस लेता है। उसके बाद मैं मरोल के बेस्ट बस डेपो जाती हूं।

"मेरी कोई निश्चित बस नहीं है, और मुझे जो भी बस दे दी जाती है, और 7 घंटे, 8 घंटे, 9 घंटे जैसा जो भी काम दे दिया जाता है, करना पड़ता है।

"कई बार हमें लंबी दूरी की बसें मिलती हैं, तो कई बार कम दूरी की, लेकिन ज़्यादातर मुझे कम दूरी की बसें मिलती हैं। लेकिन उपनगरीय अंधेरी में बहुत ज़्यादा इंडस्ट्रीज़ और ऑफ़िस होने के कारण, बसें ज़्यादातर भीड़ से भरी होती हैं। पिछले महीने किराये में सुधार होने के बाद से, बेस्ट में ज़्यादा लोग यात्रा करने लगे हैं।

"कई बार बसों में इतनी भीड़ होती है, कि मेरे लिये चलना और बस के भीतर आने वाले यात्रियों को टिकट देने के लिये दरवाज़े के पास रुकना मुश्किल हो जाता है। लेकिन मुझे इससे कोई शिकायत नहीं है। मेरे बच्चे जब तक अपने पैरों पर खड़े न हो जायें, मैं उनके लिये कड़ी मेहनत करती रहूंगी।"

मुंबई में बस कंडक्टर का काम बेहद मुश्किल होता है और इस व्यवसाय में ज़्यादातर पुरुष ही हैं। लेकिन अपने परिवार की रोज़ी-रोटी की चिंता और बच्चों के लिये प्यार के कारण वैदेही ने इस चुनौती भरे काम को चुना।

"मुझे 2014 में नौकरी पर मेरा दूसरा दिन आज भी याद है। मुझे वडाला डेपो (उत्तर मध्य मुंबई) में नियुक्त किया गया था और वडाला से बैकबे डेपो (दक्षिण मुंबई) जाने वाली एसी बसें दी गयी थीं, जहाँ मेरा छः घंटों का ब्रेक था। एसी बसों के निश्चित ग्राहक होने के कारण बैकबे डेपो वापसी की हमारी यात्रा शाम 6:30 को शुरू हुई।

"बैकबे डेपो की सभी महिला क्लर्क कर्मचारी शाम 5 बजे चली गयीं और मैं शाम 6:30 बजे तक महिला कर्मचारी कक्ष में अकेली बैठी रही। मुझे उस दिन बहुत डर लगा था, क्योंकि अंधेरा हो रहा था।

"मेरी आख़िरी बस नं 440 थी (अंधेरी पूर्व के लिये), जो वडाला डेपो से रात 8:30 को चलने वाली थी और थोड़ी सी देर होने के कारण मेरी बस छूट गयी। मेरी आँखों में आँसू आ गये, क्योंकि मेरी आख़िरी बस छूट गयी थी और मुझे पता नहीं था कि मैं उस रात घर कैसे लौटूंगी।

"मुझे मेरे बच्चों की फ़िक्र थी, जो घर पर अकेले थे। उस समय मैंने सोचा कि मैं यह नौकरी छोड़ दूंगी। कुछ बसें बदल कर किसी तरह उस रात मैं घर पहुंची, फिर मैंने इतनी जल्दी हार न मानने की ठानी। अगले दिन से मैं वडाला डेपो जल्दी सुबह 6 बजे पहुंचने लगी, ताकि मैं शाम को जल्दी निकल सकूं। शुरुआत में यह बेहद मुश्किल था, लेकिन किसी तरह मैं अपने बेटों के लिये सब कुछ सह लिया," उन्होंने बताया।

वैदेही बताती हैं कि बचपन में ही उनके बच्चों के क्रिकेट में कदम रखने का कारण उनके पति विनोद थे।

"वह माहिम डेपो (मुंबई उत्तर मध्य) में बेस्ट में नियुक्त थे और रात की शिफ़्ट करते थे, ताकि दिन में अपने बच्चों को समय दे सकें। वह अपना दिन अथर्व को प्रैक्टिस के लिये ले जाने में बिताते थे। हमारे घर के पास वाले मैदान में वह सभी बच्चों को क्रिकेट खेलने के लिये कहते थे।

"आज वो बच्चे बड़े हो गये हैं और अपनी जेब से पैसे खर्च करके अथर्व का धूम-धाम से स्वागत करने आये हैं।

"मृत्यु से कुछ ही दिन पहले मेरे पति को बेस्ट से 9,000 रुपये का बोनस मिला था, लेकिन उन्होंने वो पूरे पैसे अथर्व की क्रिकेट किट में लगा दिये; उन्होंने एक भी पैसा किसी और चीज़ में नहीं लगाया,"वैदेही ने बताया।

अथर्व अपने पिता के बहुत करीब था, जो मुंबई के कांगा लीग में खेल चुके थे। विनोद क्रिकेट के अपने सपने को अपने बेटों के माध्यम से पूरा करना चाहते थे।

"अथर्व अपने पिता के बहुत करीब था; वो दिन भर उन्हीं के साथ रहता था, मेरे साथ ज़्यादा समय नहीं बिताता था। अपनी मृत्यु के समय तक मेरे बच्चे अपने पिता के हाथों से खाया करते थे और उनका एक-दूसरे से बहुत ज़्यादा लगाव था।

"उनकी मौत का अथर्व पर गहरा असर पड़ा और कई दिन तक वह डिप्रेशन में रहा था, लेकिन उसने इस बात को मेरे सामने नहीं आने दिया। उसने छोटी उम्र में ही बड़ी ज़िम्मेदारी अपना ली, क्योंकि उसे लगा उसे अपना माँ का ख़्याल रखना है और अपने पिता के सपनों को भी पूरा करना है।

फोटो: रविवार रात को मुंबई पहुंचने पर अथर्व अंकोलेकर के दोस्तों और पड़ोसियों ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया।

"अथर्व ने अपने पिता से वादा किया था और यह उसी वादे की ओर पहला कदम है। उसके पिता उसे रणजी ट्रॉफी में खेलते देखना चाहते थे।

"क्योंकि घर से निकलने से पहले वह हमेशा अपने पिता की तसवीर के सामने खड़े होकर प्रार्थना करता है और बाहर जाने से पहले उनका आशीर्वाद लेता है।"

इतने वर्षों से अपनी माँ को कड़ी मेहनत करता देख, युवा अथर्व ने माँ को कंडक्टर की नौकरी छोड़ कर सिर्फ घर पर ट्यूशन्स पढ़ाने के लिये कहा।

"जब मैं तड़के सवेरे घर से निकलती हूं, वह नींद में रहता है और जब मैं वापस आती हूं, वह प्रैक्टिस पर रहता है। वह देर शाम को घर लौटता है। उस समय मैं ट्यूशन्स पढ़ाने में व्यस्त रहती हूं। और उसे आराम का ज़्यादा समय नहीं मिलता क्योंकि घर पर बहुत सारे बच्चे ट्यूशन पढ़ने आते हैं।

"ट्यूशन्स ख़त्म होने के बाद ही हमें बात करने का समय मिलता है। तब तक बहुत देर हो जाती है। हम जल्दी खाना खाते हैं और सो जाते हैं, क्योंकि मुझे सुबह जल्दी उठना होता है।

"उसे लगता है कि मैं बहुत ज़्यादा काम कर रही हूं और हमारे पास मिलने या बात करने का समय नहीं बच रहा। वह अक्सर मुझसे बस कंडक्टर की नौकरी छोड़ने के लिये कहता है, लेकिन जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा न हो जाये, मैं ऐसा नहीं करूंगी।

"यह बस उसके करियर का पहला कदम है। अभी उसे अपने करियर में बहुत आगे जाना है। छोटा बेटा पार्थ भी क्रिकेट में है। उसे मुंबई अंडर-14 के संभव खिलाड़ियों में चुन लिया गया है। जब मुझे लगेगा कि अथर्व अपने भाई की ज़िम्मेदारी उठाने के लिये तैयार है, तब मैं इसके (नौकरी छोड़ना)  बारे में सोचूंगी।

"वो सिर्फ 18 साल का है। मुझे उसके कंधों पर ज़्यादा बोझ नहीं डालना। मेरे नौकरी छोड़ने से उस पर दबाव बढ़ जायेगा। मैं चाहती हूं कि वह मेरी फिक्र ना करे और निश्चिंत हो कर खेले। मैं कठिनाइयों से डरती नहीं हूं। मुझे बस मेरे बच्चों का साथ चाहिये।"

अंकोलेकर परिवार का रिवाज़ है कि जब भी अथर्व कोई अच्छा काम करता है, वैदेही उसे बाहर खाने पर ले जाती है।

कोलंबो में एशिया कप की जीत के बाद, वैदेही अपने बेटे को एक बड़ा सरप्राइज़ देने की सोच रही हैं।

"सितंबर 26 को उसका जन्मदिन है, और मैं उसे मोबाइल फोन और ऐक्टिवा स्कूटर देना चाहती हूं, जिसका उसे लंबे समय से इंतज़ार है।"

अंधेरी पूर्व में घर पर मुंबई मीडिया का तांता लगा होने के बावजूद अथर्व अपने क्रिकेट ट्रेनिंग सेशन्स नहीं छोड़ रहा है।

भारतीय गेंदबाज़ी का यह उभरता सितारा बेस्ट बस लेकर मुंबई क्रिकेट असोसिएशन के क्रिकेट ग्राउंड, बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स, उत्तर पश्चिम मुंबई में शरद पवार इनडोर क्रिकेट अकेडमी जाता है।

"वो हमेशा की तरह बेस्ट बस ही लेता है। मैं उसे रोज़ के खर्च के लिये 100 रुपये देती हूं," वैदेही ने मुस्कुराते हुए कहा।

कोलंबों में अथर्व का कारनामा अनदेखा नहीं गया है। मंगलवार, सितंबर 17 को बायें हाथ के इस स्पिनर ने एक नयी ऊंचाई को छुआ जब उसे आने वाले राष्ट्रीय 50-ओवर टूर्नामेंट, विजय हज़ारे ट्रॉफी के लिये मुंबई की टीम का पहला बुलावा आया।

वैदेही अंकोलेकर और उनके बेटों का भविष्य सचमुच सुनहरा लग रहा है!

हरीश कोटियन
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